कांचीपुरम, 30 जुलाई (आईएएनएस)। देवों के देव महादेव को सावन का महीना बेहद प्रिय है। यह महीना न केवल पूजा-पाठ और भोलेनाथ की भक्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ है, बल्कि देश भर के उन तमाम मंदिरों के बारे में जानने और दर्शन करने का है, जो अपने आप में भक्ति, रहस्य और सुंदरता को समेटे हुए हैं। ऐसा ही एक मंदिर तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित है। इसका नाम एकम्बरेश्वर मंदिर है।
करीब 25 एकड़ में फैला यह प्राचीन मंदिर न केवल अपनी भव्य स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि पंच भूत स्थलों में से एक के रूप में भी महत्वपूर्ण है, जहां भगवान शिव पृथ्वी तत्व (पृथ्वी लिंगम) के रूप में पूजे जाते हैं। इस मंदिर की पवित्रता और माता पार्वती की तपस्या की कथा इसे बेहद खास बनाती है।
एकम्बरेश्वर मंदिर, जिसे एकम्बरनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित है। तमिलनाडु पर्यटन विभाग की वेबसाइट के अनुसार, यह मंदिर 600 ईस्वी से अस्तित्व में है। इसका उल्लेख शास्त्रीय तमिल संगम साहित्य में मिलता है। सातवीं शताब्दी में पल्लव राजाओं द्वारा निर्मित इस मंदिर की संरचना 9वीं शताब्दी में चोल वंश ने बनवाई, जिसे बाद में विजयनगर राजाओं ने और भव्य बनाया।
मंदिर का परिसर 25 एकड़ में फैला है और यह भारत के सबसे बड़े मंदिर परिसरों में से एक है। इसका दक्षिणी गोपुरम 11 मंजिला और 192 फीट ऊंचा है, जो देश के सबसे ऊंचे गोपुरमों में से एक है।
मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का पृथ्वी लिंगम स्थापित है, जिसे एकम्बरेश्वर या आम्र वृक्ष का स्वामी कहा जाता है। मंदिर में 1,008 शिवलिंगों से सुसज्जित सहस्र लिंगम और हजार स्तंभों वाला हॉल विजयनगर काल की स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है।
इसके अलावा, परिसर में भगवान विष्णु का नीलाथिंगल थुंडम पेरुमल मंदिर भी है। मंदिर का सबसे आकर्षक हिस्सा 3,500 साल पुराना आम का पेड़ है, जिसकी चार डालियां चार वेदों की प्रतीक मानी जाती हैं और प्रत्येक डाल के आम का स्वाद अलग होता है।
एकम्बरेश्वर मंदिर की पौराणिक कथा माता पार्वती की भक्ति और भगवान शिव के प्रेम से जुड़ी है। कथा के अनुसार, एक बार पार्वती ने खेल-खेल में भगवान शिव की आंखें बंद कर दीं, जिससे सृष्टि में अंधेरा छा गया। इससे क्रोधित शिव ने पार्वती को पृथ्वी पर तपस्या करने का आदेश दिया। पार्वती, कामाक्षी के रूप में कांचीपुरम पहुंचीं और वेगवती नदी के किनारे एक आम के पेड़ के नीचे रेत से शिवलिंग बनाकर तपस्या करने लगीं।
शिव ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए पहले अग्नि भेजी। पार्वती ने अपने भ्राता विष्णु से प्रार्थना की, जिन्होंने शिव के मस्तक से चंद्रमा निकालकर उसकी किरणों से पेड़ और पार्वती को ठंडक प्रदान की। इसके बाद शिव ने गंगा नदी को उफान पर भेजा। पार्वती ने गंगा को अपनी बहन कहकर समझाया, जिससे गंगा ने उनकी तपस्या में बाधा नहीं डाली। आखिरकार, जब वेगवती नदी उफान पर आई और शिवलिंग को बहाने लगी, तो पार्वती ने उसे अपनी बाहों में समेट लिया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने एकम्बरेश्वर के रूप में प्रकट होकर वरदान दिया। इसी कारण शिव को यहां तझुवकुझैंथार यानी उनका आलिंगन करने वाला भी कहा जाता है। इस शिवलिंग पर पार्वती के आलिंगन के निशान आज भी देखे जा सकते हैं।
मंदिर में सावन, महाशिवरात्रि, शिवरात्रि, पूर्णिमा के साथ ही सामान्य दिनों में भी भक्तों का तांता लगता है। चेन्नई से मात्र 75 किमी दूर इस मंदिर में आसानी से पहुंचा जा सकता है।
--आईएएनएस
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