झारखंड की 'फुटबॉलर बेटियां', संघर्ष की पथरीली जमीन से अंतरराष्ट्रीय फलक पर बना रहीं पहचान

झारखंड की 'फुटबॉलर बेटियां', संघर्ष की पथरीली जमीन से अंतरराष्ट्रीय फलक पर बना रहीं पहचान

झारखंड की 'फुटबॉलर बेटियां', संघर्ष की पथरीली जमीन से अंतरराष्ट्रीय फलक पर बना रहीं पहचान

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IANS
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संघर्ष की पथरीली जमीन से अंतरराष्ट्रीय फलक पर पहचान बना रहीं झारखंड की फुटबॉलर बेटियां

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

रांची, 17 अगस्त (आईएएनएस)। झारखंड की पथरीली जमीन पर फुटबॉलर बेटियां अपने हौसले से नाम कमा रही हैं। जिनके घरों में आज भी भूख, गरीबी और संघर्ष का साया है, लेकिन मैदान पर उनका जुनून इन तमाम मुश्किलों को मात दे रहा है। किसी की मां दूसरों के घरों में बर्तन धो रही हैं, तो किसी के पिता दिहाड़ी मजदूरी में लगे हैं। नंगे पांव दौड़ते हुए, गांव वालों की फब्तियों के बीच भी इन लड़कियों ने फुटबॉल खेलने का सपना नहीं छोड़ा।

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भूटान में 20 से 31 अगस्त तक होने वाली सैफ अंडर-17 बालिका फुटबॉल प्रतियोगिता के लिए भारतीय टीम में झारखंड की सात खिलाड़ी चुनी गई हैं। इनमें गुमला की सूरजमुनि कुमारी, एलिजाबेथ लकड़ा, अनीता डुंगडुंग, विनीता होरो और वीणा कुमारी, हजारीबाग की अनुष्का कुमारी और रांची की दिव्यानी लिंडा शामिल हैं। इन सातों लड़कियों के संघर्ष की कहानी कमोबेश एक जैसी है।

दिव्यानी लिंडा रांची के ओरमांझी थाना क्षेत्र की रहने वाली हैं। उनके पिता 4 साल पहले गुजर गए और मां मजदूरी करती हैं। घर पर एक दिव्यांग भाई के अलावा दो भाई हैं। घर की माली हालत यह है कि सुबह खाना बन गया तो शाम की रोटी के लिए सोचना पड़ता है। ऐसी मुश्किलों के बावजूद, दिव्यानी ने रोज पांच किलोमीटर पैदल चलकर फुटबॉल का अभ्यास किया और आज भारतीय टीम का हिस्सा हैं।

इसके पहले भी दिव्यानी लिंडा का चयन दो बार नेशनल स्तर के टूर्नामेंट खेलो इंडिया और एसजीएफआई के लिए हुआ था। वह सीनियर नेशनल में भी खेल चुकी हैं। वह अंडर-16 में भारत की टीम का हिस्सा बनकर नेपाल में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सैफ टूर्नामेंट में भी देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं।

सूरजमुनि कुमारी गुमला जिले के बिशुनपुर प्रखंड के नक्सल प्रभावित गोबरसेला गांव की रहने वाली हैं। गांव की कठिन परिस्थितियों और गरीब किसान परिवार से आने के बावजूद, उन्होंने गुमला के आवासीय फुटबॉल सेंटर में प्रशिक्षण लिया। उनके माता-पिता कहते हैं कि सूरजमुनि ने अपने जुनून और मेहनत से जगह बनाई है। उम्मीद है कि सूरजमुनि फुटबॉल में नाम कमाएगी तो घर के हालात बदलेंगे।

एलिजाबेथ लकड़ा भी बिशुनपुर प्रखंड के ममरला गांव की रहने वाली हैं। छह भाई-बहनों के बीच परिवार की रोजमर्रा की जिंदगी खेती पर निर्भर है। कच्चा घर है, लेकिन माता-पिता का सपना था कि उनकी बेटी भारत के लिए खेले। गरीबी के बावजूद, एलिजाबेथ ने लगातार अभ्यास किया और अंडर-17 टीम में चुनी गई हैं।

अनीता डुंगडुंग बसिया प्रखंड के ससिया गांव की हैं। उनके घर की माली हालत ठीक नहीं है, लेकिन उन्होंने गुमला सेंटर में दिन-रात अभ्यास कर अपनी पहचान बनाई। नंगे पांव खेलना, गांव वालों के ताने सहना, और हर चुनौती को पार करना उनके सपनों का हिस्सा रहा।

विनीता होरो सिमडेगा जिले के बानो की रहने वाली हैं और छोटे किसान परिवार से आती हैं। वह 2022-23 में सुब्रतो मुखर्जी कप में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम का हिस्सा रही हैं।

अनुष्का कुमारी रांची के ओरमांझी की हैं। वह हजारीबाग स्थित आवासीय फुटबॉल सेंटर में ट्रेनिंग लेती हैं। उनके माता-पिता दिहाड़ी मजदूर हैं। सुबह चार बजे उठकर अभ्यास, दिनभर के काम और पढ़ाई के बीच अनुष्का ने फुटबॉल के प्रति अपना जुनून जिंदा रखा। उनका रोल मॉडल रोनाल्डो है और वह एक दिन भारतीय टीम की कप्तान बनने का सपना देखती हैं।

इन सात लड़कियों में से पांच ने गुमला स्थित सेंट पैट्रिक हाई स्कूल के आवासीय सेंटर में फुटबॉल की बारीकियां सीखी हैं। इनकी कोच वीणा केरकेट्टा कहती हैं कि बेहद निम्न पृष्ठभूमि से आने वाली हमारी लड़कियां राष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह पहचान बना रही हैं, वह हमारे लिए गर्व का विषय है।

--आईएएनएस

एसएनसी/एबीएम

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