नई दिल्ली, 9 जून (आईएएनएस)। सिक्किम में 1 जून को आए भीषण भूस्खलन के मलबे में भारतीय सेना के एक लेफ्टिनेंट कर्नल, उनका परिवार और तीन अन्य सैन्यकर्मी दब गए थे। अब आठ दिन बाद भारतीय सेना के सिपाही सैनुद्दीन पी.के. के पार्थिव शरीर को भूस्खलन स्थल से निकाला जा सका है।
लक्षद्वीप के एंड्रोट द्वीप में 20 दिसंबर 1991 को जन्मे सैन्य वीर सैनुद्दीन ने 24 मार्च 2012 को भारतीय सेना की सेवा जॉइन की थी। यहां खराब मौसम के कारण राहत और बचाव कार्यों में बाधा आ रही है। 1 जून को सिक्किम में भारतीय सेना का एक कैंप भूस्खलन की चपेट में आ गया। इस हादसे के बाद सेना के तीन जवानों की मौत हो गई थी। वहीं, छह अन्य व्यक्ति अभी तक लापता हैं।
इनमें से एक यानी सैनुद्दीन पी.के. के पार्थिव शरीर अब ढूंढ निकाला गया है। अपने 13 वर्षों की सेवा में सैनुद्दीन पी.के. ने सियाचिन जैसे दुर्गम क्षेत्रों में अद्वितीय साहस, अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा के साथ देश की सेवा की। वे अपने साथियों और वरिष्ठ अधिकारियों के बीच एक निष्ठावान, अनुशासित और कर्तव्यपरायण सैनिक के रूप में पहचाने जाते थे। उनकी अंतिम यात्रा उत्तर सिक्किम से उनके घर लक्षद्वीप तक लगभग 2,500 किलोमीटर लंबी रही।
यह जटिल और अंतिम यात्रा भारतीय सेना, वायुसेना और नौसेना के त्रिसेना समन्वय प्रयासों से संभव हो सकी, जिसमें स्थानीय प्रशासन का भी पूरा सहयोग रहा। सेना के मुताबिक उनकी पूरी जीवन यात्रा अपने आप में वीरता और सम्मान की मिसाल है। इस यात्रा में थलसेना के एविएशन हेलीकॉप्टर और भारतीय वायुसेना के सी-295 विमान सहित कई साधनों का उपयोग किया गया, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सका कि वीर को समयबद्ध और सम्मानपूर्वक उनके घर पहुंचाया जा सके।
रविवार को बेंगडुबी मिलिट्री स्टेशन में उन्हें पूरे सैन्य सम्मान के साथ अंतिम श्रद्धांजलि दी गई। इसके बाद एंड्रोट द्वीप पहुंचने पर भारतीय नौसेना ने गार्ड ऑफ ऑनर के साथ उन्हें अंतिम सलामी दी, जो इस बलिदान की पवित्रता को दर्शाता है। इस दुखद क्षण में सैनुद्दीन पी.के. के कमांडिंग ऑफिसर ने कहा, “सिपाही सैनुद्दीन पी.के. भारतीय सेना की सर्वोत्तम परंपराओं के प्रतीक थे। शांतिपूर्ण दक्षता, पूर्ण ईमानदारी और बेजोड़ समर्पण के साथ उन्होंने अपने कर्तव्य का पालन किया। सियाचिन हो या सिक्किम, उन्होंने हर चुनौती में प्रेरणादायक साहस दिखाया। उनका बलिदान हमें यह याद दिलाता है कि सच्ची वीरता वही है जो अदृश्य खतरों के बीच भी निस्वार्थ सेवा में दिखे। हम एक सैनिक, एक साथी और भारत के बेटे को सलाम करते हैं, जिनकी स्मृति सदा हमारा मार्गदर्शन करेगी।”
सेना ने इस मौके पर कहा कि यह केवल एक पार्थिव शरीर की वापसी नहीं थी। यह राष्ट्र का सलाम था, ‘सेवा परम धर्म’ की भावना को दोहराने वाला एक संकल्प था। त्रिसेना की एकजुटता और विभिन्न संस्थानों द्वारा दिखाया गया सम्मान इस अटूट रिश्ते को दर्शाता है, जो धरती से सैनिक और देश से उसके रक्षक को जोड़ता है। भारत माता के वीर सपूत को विनम्र श्रद्धांजलि।
--आईएएनएस
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