रोहित टोकस: कॉमनवेल्थ मेडलिस्ट, जो युवाओं के लिए प्रेरणा बन गया

रोहित टोकस: कॉमनवेल्थ मेडलिस्ट, जो युवाओं के लिए प्रेरणा बन गया

रोहित टोकस: कॉमनवेल्थ मेडलिस्ट, जो युवाओं के लिए प्रेरणा बन गया

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IANS
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रोहित टोकस: कॉमनवेल्थ मेडलिस्ट, जो युवाओं के लिए प्रेरणा बन गया

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 31 अगस्त (आईएएनस)। कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को मेडल दिलाने वाले मुक्केबाज रोहित टोकस की मेहनत, जज्बा और संघर्षशीलता युवाओं के लिए प्रेरणा है।

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1 अगस्त 1993 को दिल्ली के मुनीरका में जन्मे रोहित टोकस टेलीविजन पर फिल्म देखते हुए बॉक्सिंग से प्यार कर बैठे। बेटे की रुचि को देखते हुए पिता ने उसे एक स्थानीय क्लब में दाखिल करवा दिया।

रोहित बॉक्सिंग की बुनियादें चीजें सीखने के बाद इस खेल को छोड़ चुके थे। इस बीच छठी क्लास के सहपाठी ने रोहित को एक बाउट में हरा दिया।

इस हार ने रोहित को एक बार फिर बॉक्सिंग सीखने के लिए प्रेरित किया। बॉक्सिंग के प्रति उनका जुनून फिर से जगा गया था, उन्हें अपनी मंजिल मिल चुकी थी। तब से लेकर आज तक रोहित ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

दिल्ली स्टेट चैंपियन बनने के बाद रोहित के करियर का ग्राफ उठता गया। सब-जूनियर लेवल पर जीत के बाद रोहित साल 2010 में यूथ नेशनल्स में भी चैंपियन बन गए। साल 2011 में क्यूबा यूथ ओलंपिक में रजत पदक जीतने के बाद, उन्होंने 2012 में अपने पहले सीनियर राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट में कांस्य पदक जीता। इसके अगले साल ऑल-इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी गेम्स में गोल्ड मेडल जीता।

रोहित टोकस ने साल 2015 में किंग्स कप खेला, उसमें 60 किलोग्राम वर्ग में ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया। इसके बाद उन्होंने 64 किलोग्राम भारवर्ग में स्विच किया और साल 2016 में पहली एलीट मेंस नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में रजत पदक जीत लिया।

2017 किंग्स कप और 2018 इंडिया ओपन में कांस्य पदक जीतने के बाद, रोहित ने तीसरी एलीट मेंस नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल अपने नाम किया और साल 2019 में मकरान कप में भी ब्रॉन्ज मेडल जीत लिया।

कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में रोहित टोकस ने 67 किलोग्राम वर्ग में भारत को ब्रॉन्ज मेडल दिलाया। उन्हें सेमीफाइनल में जाम्बिया के स्टीफन जिम्बा से करीबी मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा।

कॉमनवेल्थ गेम्स में अपने पहले मुकाबले से 10 दिन पूर्व रोहित को उसी घुटने में चोट लगी थी, जिसके चलते वह करीब दो साल रिंग से बाहर रहे थे, लेकिन उन्होंने गंभीर चोट के बावजूद हार नहीं मानी और कठिन रिहैबिलिटेशन के बाद वापसी करते हुए अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश के लिए मेडल जीता।

इस मुक्केबाज ने संदेश दिया कि हालात चाहे जैसे भी हों, अगर इच्छाशक्ति और मेहनत हो, तो हर सपना साकार किया जा सकता है। यही कारण है कि वह आज की युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा हैं।

--आईएएनएस

आरएसजी

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

      
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