भगवत गीता के अनुसार क्या है आजादी का असली मतलब? जिसे भूलते जा रहे हैं कलयुग के लोग

क्या आपने कभी सोचा है कि आजादी क्या है? अगर आपने सोचा है और इसका जवाब नहीं मिला, तो आइए हम आपको बताते हैं कि भगवत गीता में आजादी का क्या मतलब बताया गया है.

क्या आपने कभी सोचा है कि आजादी क्या है? अगर आपने सोचा है और इसका जवाब नहीं मिला, तो आइए हम आपको बताते हैं कि भगवत गीता में आजादी का क्या मतलब बताया गया है.

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Sonam Gupta
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what is the meaning of freedom in bhagavad gita in hindi

what is the meaning of freedom in bhagavad gita in hindi Photograph: (social media)

15 अगस्त 1947 में भारत को आजादी मिली थी, जिसे हर साल 15 अगस्त को हम स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते हैं. इस दिन को स्कूल-कॉलेजों में झंडारोहण होता है और भी कई तरह के प्रोग्राम होते हैं, जो इस दिन को खास बनाते हैं. मगर, क्या आपने कभी सोचा है कि असल में आजादी है क्या? आज के समय में हम किन चीजों से आजादी चाहते हैं? हर सवाल का जवाब देने वाली भगवत गीता में आजादी को भी श्री कृष्ण ने बड़ी ही बारीकी से समझाया है.

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गीता में कृष्ण कहते हैं, किसी बंधन से मुक्ति पाने को हम आजादी नहीं कह सकते, बल्कि आजादी का वास्तविक अर्थ इससे कहीं अधिक है. भगवद्गीता हमें बताती है कि वास्तविक स्वतंत्रता बाहरी परिस्थितियों से नहीं, बल्कि अंतर्मन और आत्मा की मुक्ति से आती है.

कृष्ण ने बताई है क्या है असली आजादी

"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥" (गीता 2.47)

गीता में कृष्ण अर्जुन से कहते हैं: हे अर्जुन, तुम्हारे पास केवल कर्म करने का अधिकार है, उसके फल पाने का अधिकार नहीं है. जब हम फल की चिंता छोड़कर कर्तव्यपथ पर चलते हैं, उसी क्षण से हम मानसिक बंधनों से मुक्त हो जाते हैं. मानसिक चिंताओं और बंधनों से मुक्त होना ही सच्ची आजादी है.

रागद्वेषवियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन्।

आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति॥" (गीता 2.64)

कृष्ण कहते हैं- जो लोग राग-द्वेष से मुक्त होकर अपनी पांचों इंद्रियों को संयमित रखना सीख लेते हैं, वे भीतर से शांति और सच्ची स्वतंत्रता हासिल कर लेते हैं.

"श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।

ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥" (गीता 4.39)

कृष्ण के अनुसार- श्रद्धा और संयम से जीतने वाला व्यक्ति ही आत्मज्ञान को प्राप्त कर सकता है और आत्मज्ञान को प्राप्त करने वाले व्यक्ति परम शांति और स्वतंत्रता मिलती है.

"मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम्।" (गीता 8.15)

ईश्वर की प्राप्ति से जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होना जाना ही अंतिम स्वतंत्रता (मोक्ष) है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.) 

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