वट सावित्री व्रत: जानिए व्रत से जुड़े महत्व और पूजन के तरीके के बारे में
आज दान अमावस्या और वट सावित्री व्रत का पूजन भी होगा। व्रत में सुहागिनें अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए व्रत रखतीं है।
नई दिल्ली:
हर साल ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को शनि जयंती मनाई जाती है। इस बार शनि जयंती 25 मई को मनाई जा रही है। जयंती के साथ आज दान अमावस्या और वट सावित्री व्रत का पूजन भी होगा।
वट सावित्री व्रत में सुहागिनें अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए व्रत रखतीं है। 108 बार बरगद की परिक्रमा कर अपनी पति की दीघार्यु और उन्नति के लिए प्रार्थना करती है। प्यार, श्रद्धा और समर्पण के इस देश में यह व्रत सच्चे और पवित्र प्रेम की कहानी कहता है।
गुरुवार को वट सावित्री पूजन करना बेहद फलदायक और शुभ होता है। मान्यता के अनुसार इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने के बाद ही सुहागन को जल ग्रहण करना चाहिए।
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पूजा की विधि
वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिने सोलह श्रृंगार करके सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, फल और मिठाई से सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करें। वट वृक्ष की जड़ को दूध और जल से सींचें। इस व्रत के पूजन के दौरान पेड़ को फल-फूल अर्पित करे।
इसके बाद कच्चे सूत को हल्दी में रंगकर वट वृक्ष में लपेटते हुए 5, 11, 21, 51 या 108 बार परिक्रमा करें और कथा सुनें। शाम को मीठा भोजन ही करें। पूजा के बाद सावित्री और यमराज से पति की लंबी आयु एवं संतान के लिए प्रार्थना करें।
महत्व
हिंदू पुराण में बरगद के पेड़े में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास बताया जाता है।मान्यता के अनुसार इस पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है। वट सावित्री व्रत में वृक्ष की परिक्रमा का भी नियम है।
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