Saphala Ekadashi Vrat Katha 2025: आज सफला एकदाशी पर जरूर पढ़े ये खास व्रत कथा, सुखों से भर जाएगा जीवन

Saphala Ekadashi 2025: सफला एकादशी आज यानी 15 दिसंबर को है. इस व्रत में राजा महिष्मान के पापी पुत्र लुम्पक की कथा प्रचलित है, पूजा के दौरान कथा का पाठ जरुर करना चाहिए, इससे श्रीहरि प्रसन्न होते हैं.

Saphala Ekadashi 2025: सफला एकादशी आज यानी 15 दिसंबर को है. इस व्रत में राजा महिष्मान के पापी पुत्र लुम्पक की कथा प्रचलित है, पूजा के दौरान कथा का पाठ जरुर करना चाहिए, इससे श्रीहरि प्रसन्न होते हैं.

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Akansha Thakur
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Saphala Ekadashi Vrat Katha 2025

Saphala Ekadashi Vrat Katha 2025

Saphala Ekadashi Vrat Katha 2025: सफला एकादशी का व्रत आज यानी 15 दिसंबर 2025, सोमवार को रखा जा रहा है. पुराणों में इस एकादशी को विशेष फलदायी बताया गया है. मान्यता है कि जो भक्त नियम और श्रद्धा से यह व्रत करता है, भगवान विष्णु उसके दुख दूर करते हैं. साथ ही जीवन में सफलता और राजयोग का आशीर्वाद देते हैं. शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत में राजा महिष्मान के पुत्र लुम्पक की कथा का श्रवण आवश्यक माना गया है. मान्यता है कि सफला एकदाशी पर इस कथा के बिना व्रत अधूरा समझा जाता है.  

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सफला एकादशी व्रत कथा

प्राचीन काल में चम्पावती नाम की एक नगरी थी. इस नगरी पर राजा महिष्मान का शासन था. उनके चार पुत्र थे. सबसे बड़ा पुत्र लुम्पक अत्यंत क्रूर और पापी स्वभाव का था. लुम्पक बुरे कर्मों में लिप्त रहता था. वह पिता का धन व्यर्थ करता था. सज्जनों, ब्राह्मणों और भक्तों की निंदा करना उसे अच्छा लगता था. उसके कुकर्मों से पूरी प्रजा दुखी थी. लेकिन युवराज होने के कारण कोई विरोध नहीं कर पाता था.

एक दिन राजा को उसके पापों का पता चल गया. राजा ने क्रोधित होकर लुम्पक को राज्य से निकाल दिया. राज्य से बाहर जाने के बाद वह दिन में जंगल में रहता था. रात में चोरी और हिंसा के लिए नगर में प्रवेश करता था. वन में वह निर्दोष पशु-पक्षियों का शिकार करता था. कई बार पकड़े जाने पर भी पहरेदार उसे छोड़ देते थे.

अज्ञान में हुआ एकादशी व्रत

जिस जंगल में लुम्पक रहता था, वह भगवान को प्रिय था. वहां एक पुराना पीपल का वृक्ष था. लोग उसे देवताओं का क्रीड़ा स्थल मानते थे. पौष मास के कृष्ण पक्ष की दशमी को लुम्पक ठंड से बेहोश हो गया. उसके पास पहनने को वस्त्र नहीं थे. पूरी रात वह पीड़ा में पड़ा रहा. नींद भी नहीं आई. अगले दिन एकादशी थी. दोपहर तक वह अचेत ही रहा. सूरज की गर्मी से उसे होश आया. वह भोजन की तलाश में निकला. उस दिन वह शिकार नहीं कर सका. उसने जमीन पर गिरे कुछ फल उठाए. पीपल के नीचे जाकर उसने वे फल रख दिए. दुखी मन से भगवान को अर्पित कर दिए.  भूख और पीड़ा के कारण वह रोता रहा. रात भर जागता रहा. इस तरह उससे अनजाने में एकादशी का व्रत और जागरण हो गया.

भगवान विष्णु की कृपा

लुम्पक के इस उपवास से भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए. उसके सभी पाप नष्ट हो गए. अगली सुबह एक दिव्य रथ प्रकट हुआ. आकाशवाणी हुई  “भगवान नारायण की कृपा से तुम्हारे पाप समाप्त हो गए हैं. अब अपने पिता के पास लौटो और राज्य प्राप्त करो.” लुम्पक ने भगवान का धन्यवाद किया. वह सुंदर वस्त्र धारण कर पिता के पास पहुंचा. उसने सारी घटना सुनाई. राजा महिष्मान ने पुत्र को राज्य सौंप दिया. स्वयं वन जाकर भगवान की भक्ति में लीन हो गए. अंत में उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया.

सफला एकादशी का फल

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो भक्त श्रद्धा से सफला एकादशी का व्रत करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. अंत में उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस एकादशी की कथा सुनने या पढ़ने से राजसूय यज्ञ के समान पुण्य मिलता है.

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