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Shani Dev Aarti: शनिदेव की शाम को करें ये आरती, हर मनोकामना होगी पूरी और बलाओं से मिलेगी मुक्ति

आज शनिवार का दिन है. ये दिन शनिदेव (Shani Dev) को समर्पित होता है. इन दिन शनिदेव की पूजा-उपासना की जाती है. इसलिए, आज के दिन शनिदेव की पूजा-अर्चना (Shani Dev Puja) के साथ ये आरती करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करते है.

Updated on: 22 Jan 2022, 09:33 AM

नई दिल्ली:

आज शनिवार का दिन है. ये दिन शनिदेव (Shani Dev) को समर्पित होता है. इन दिन शनिदेव की पूजा-उपासना की जाती है. माना जाता है कि आज के दिन जो भक्त शनिदेव की आरती (shani dev ki aarti) सच्ची श्रद्धा और भक्ति से करते है. शनिदेव उनसे प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते है. बता दें कि शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त हैं. इसलिए, इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा (lord shanidev aarti) करने से भी शनि को आने वाली सारी बाधाएं दूर हो जाती है. शनिदेव को न्याय का देवता माना गया है. वे अच्छे काम करने वालों को अच्छा फल देते हैं . वहीं बुरे काम करने वालों को दंड भी देते है. अगर आपको अपने बिगड़े काम बनाने है तो इस दिन इनकी विशेष पूजा-अर्चना करें. इसके साथ ही आज शनिवार के दिन शनिदेव की ये आरती (saturday shani dev aarti) जरूर करें. 

                                                             

शनिदेव की आरती (shanidev ki aarti 2022)

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।

सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥

जय जय श्री शनि देव....

श्याम अंग वक्र-दृ‍ष्टि चतुर्भुजा धारी।

नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥

जय जय श्री शनि देव....

क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।

मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥

जय जय श्री शनि देव....

मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।

लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥

जय जय श्री शनि देव....

देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।

विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥

जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।

                                                               

शनिवार व्रत की आरती (shani dev aarti with lyrics)

आरती कीजै नरसिंह कुंवर की।

वेद विमल यश गाऊं मेरे प्रभुजी॥

पहली आरती प्रहलाद उबारे।

हिरणाकुश नख उदर विदारे॥

दूसरी आरती वामन सेवा।

बलि के द्वार पधारे हरि देवा॥

तीसरी आरती ब्रह्म पधारे।

सहसबाहु के भुजा उखारे॥

चौथी आरती असुर संहारे।

भक्त विभीषण लंक पधारे॥

पांचवीं आरती कंस पछारे।

गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले॥

तुलसी को पत्र कंठ मणि हीरा।

हरषि-निरखि गावें दास कबीरा॥