Chhath Puja 2021: छठ पर्व हुआ संपन्न, उगते हुए सूर्य को श्रद्धालुओं ने दिया अर्घ्य
10 नवंबर को डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया गया. छठ पर्व के अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर महापर्व (Chhath mahaparv) का समापन हुआ. .
highlights
- अंतिम दिन सुबह से ही पटना, दिल्ली, गाजियाबाद में लोग नदी के घाटों पर पहुंचने लगे
- छठ पूजा के चौथे दिन सूर्योदय का समय सुबह 06:41 बजे था
- लोगों ने अदरक और पानी से 36 घंटे का कठोर व्रत तोड़ा
नई दिल्ली:
Chhath Puja 2021: चार दिनों तक मनाई जाने वाली छठ पूजा (Chhath puja) का समापन आज यानी 11 नवंबर को उगते सूर्य भगवान को अर्घ्य (Arghya) देकर संपन्न हो गया. इस साल छठ की शुरुआत 8 नवंबर को नहाय खाय से हुई. 9 नवंबर को खरना मनाया गया. 10 नवंबर को डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया गया. छठ पर्व के अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर महापर्व (Chhath mahaparv) का समापन हुआ. ग्रंथों में सूर्य देव को हर दिन अर्घ्य देने की मान्यता हैं, मगर छठ पूजा में सूर्य देव को अर्घ्य देने का विशेष महत्व बताया गया है.
36 घंटे का कठोर व्रत तोड़ा
छठ पर्व के अंतिम दिन सुबह से ही पटना, दिल्ली, गाजियाबाद में लोग नदी के घाटों पर पहुंचने लगे. कई जगहों पर व्रती और उनके परिवार के लोग नदी के किनारे बैठकर सूरज देवता के उगने का इंतजार करने लगे. सूर्य उगते ही अर्घ्य अर्पित किया गया, इसके बाद व्रतियों ने एक दूसरे को प्रसाद देकर बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया.आशीर्वाद लेने के बाद व्रती अपने घर पहुंचे और फिर अदरक और पानी से 36 घंटे का कठोर व्रत तोड़ा. छठ पूजा के चौथे दिन सूर्योदय का समय सुबह 06:41 बजे था.
सीएम नीतीश कुमार ने मनाई छठ पूजा
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सरकारी आवास एक अणे मार्ग पर भी छठ पूजा संपन्न हुई। लालू यादव के जमानत पर रिहा होने के बाद इस बार माना जा रहा था कि राबड़ी देवी के घर भी छठ पूजा होगी, लेकिन लालू की तबीयत ठीक न होने की वजह से पूरा परिवार कुछ ही दिन पटना रहकर दिल्ली चला गया है। पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने इस बार छठ नहीं किया। लालू के जेल जाने और राबड़ी देवी के बीमार होने के बाद से उनके घर आयोजन नहीं हो रहा है।
महाभारत काल से शुरू हुई परंपरा
पौराणिक कथाओं के अनुसार छठ महापर्व की शुरुआत महाभारत काल से शुरू हुई. भगवान सूर्यदेव की कृपा से कुंती को कर्ण नाम के तेजस्वी पुत्र प्राप्ती हुई. कर्ण हर रोज जल में कमर तक खड़े होकर सूर्यदेव को अर्ध्य दिया करते थे. वे रोजाना सूर्यदेव की पूजा अर्चना करते थे. माना जाता है कि जल में कमर तक खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा यहीं से शुरू हुई. छठ पूजा के दौरान षष्ठी और सप्तमी तिथि को व्रती जल में कमर तक खड़े होकर भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित करते हैं. एक अन्य मान्यता के अनुसार जब पांडव कौरवों से अपना सबकुछ गवां बैठे थे, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था. इस व्रत के प्रताप से उनका राजपाट दोबारा मिल गया.
क्यों दिया जाता है अर्घ्य?
छठ पूजा (Chhath Puja) में अस्ताचल सूर्य यानी डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. मान्यता के अनुसार सायंकाल में सूर्यदेव अपनी पत्नी देवी प्रत्युषा के साथ बीता रहे होते हैं. इस कारण शाम में डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्य के साथ-साथ देवी प्रत्युषा की उपासना की जाती है. ऐसा करने से व्रती की मनोकामना पूरी हो जाती है. ऐसा माना गया है कि सूर्य को अर्घ्य देने से कुंडली में सूर्य की स्थिति ताकतवर होती है. छठ पूजा के अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का रिवाज है. इस दिन पूरा परिवार घाट पर जाता है और सूर्य देवता छठी मैया की अराधना करते हैं.
जल अर्पित करने के कई लाभ
अर्घ्य में सूर्य देवता को जल के साथ दूध अर्पित किया जाता है. सूर्य संपूर्ण ब्रह्मांड को ऊर्जा देते हैं. सूर्य को जल अर्पित करने के कई लाभ हैं. ऐसा कहा जाता है कि सूर्य को अर्घ्य देने से सौभाग्य में इजाफा होता है. सूर्य को निडर और निर्भीक ग्रह के रूप में माना जाता है. इसी आधार पर सूर्य को अर्घ्य देने से श्रद्धालुओं को भी यह गुण मिलता है. इससे कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत हो जाती है. ऐसा कहा जाता है कि सूर्य देवता को अर्घ्य देने से बुद्धि के साथ मान-सम्मान में इजाफा होता है.
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