Mahashivratri 2019: जानें शिवरात्रि का क्या है महत्व, आखिर कैसे हुआ था शिव-गौरी विवाह
विवाह में देवताओं-असुरों से लेकर जानवर, भूत-पिशाच तक शामिल हुए थे. ऐसे तो देवताओं और असुरों के बीच हमेशा झगड़ा होता रहता था, लेकिन शादी में सभी उत्साह के साथ शरीक हुए.
नई दिल्ली:
देवों के देव महादेव के बारे में कहा जाता है कि वह जिस पर भी प्रसन्न हो जाते हैं, उसकी झोली खुशियों से भर देते हैं. कहते हैं कि महाशिवरात्रि के अवसर पर शिव-पार्वती की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन शिव-पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था और इसी दिन प्रथम शिवलिंग भी प्रकट हुआ था. इसबार 4 मार्च को देशभर में महाशिवरात्री का पर्व मनाया जाएगा. शिवरात्रि का महापर्व फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. वहीं इस बार सोमवार को शिवरात्री होने से विशेष संयोग बन रहे है. तो इसबार शिवभक्त अपनी भक्ति से भोले को प्रसन्न कर सभी मनोकामना पूर्ण कर सकते है.
वैसे तो शिवभक्त महादेव के भोलेपन, गुस्से और उनका पत्नी पार्वती के प्रति प्रेम सभी जानते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान शिव और पार्वती की शादी बड़े ही भव्य तरीके से हुई थी. विवाह में देवताओं-असुरों से लेकर जानवर, भूत-पिशाच तक शामिल हुए थे. ऐसे तो देवताओं और असुरों के बीच हमेशा झगड़ा होता रहता था, लेकिन शादी में सभी उत्साह के साथ शरीक हुए.
पौराणिक मान्यता के अनुसार, शिव-पार्वती के विवाह से पहले वर-वधू की वंशावली घोषित होनी थी. वधू पक्ष की ओर से तो वंशावली घोषित कर दी गई, लेकिन वर पक्ष यानी शिव जी की तरफ से कोई भी रिश्तेदार मौजूद नहीं था. ऐसे में पार्वती के घरवालों को हैरानी और चिंता हुई कि वो ऐसे घर में अपनी बेटी भेज रहे हैं, जहां वर के माता-पिता, रिश्तेदार या भाई-बहन ही नहीं हैं.
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पार्वती के पिता पर्वत राज ने शिव से अनुरोध किया कि वो अपने वंश के बारे में कुछ बताएं, लेकिन तब शिव ने पार्वती समेत सभी के सामने मौन धारण कर लिया. इसके बाद नारद मुनि ने सभी को बताया कि उनके माता-पिता या कोई वंश नहीं है क्योंकि महादेव स्वयंभू हैं. इन्होंने खुद अपनी रचना की है.
महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार माना जाता है. हिंदु धर्म के अनुसार, हर वर्ष फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है. माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था.
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