सिंहस्थ, कुंभ या अर्धकुंभ में अखाड़ों का विशेष महत्व होता है. यह अखाड़े हैं क्या? इनकी परंपरा क्या है, सिंहस्थ में जाने से पूर्व जानिए ...शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता प्राप्त कुल 13 अखाड़े हैं. पहले आश्रमों के अखाड़ों को बेड़ा अर्थात साधुओं का जत्था कहा जाता था. पहले अखाड़ा शब्द का चलन नहीं था. साधुओं के जत्थे में पीर और तद्वीर होते थे. अखाड़ा शब्द का चलन मुगलकाल से शुरू हुआ. अखाड़ा साधुओं का वह दल है जो शस्त्र विद्या में भी पारंगत रहता है.
मूलत: कुंभ या अर्धकुंभ में साधु-संतों के कुल 13 अखाड़ों द्वारा भाग लिया जाता है. इन अखाड़ों की प्राचीन काल से ही स्नान पर्व की परंपरा चली आ रही है. इन अखाड़ों के नाम हैं :
शैव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़े :
1. श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी- दारागंज प्रयाग (उत्तर प्रदेश).
2. श्री पंच अटल अखाड़ा- चैक हनुमान, वाराणसी (उत्तर प्रदेश).
3. श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी- दारागंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश).
4. श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती- त्रंब्यकेश्वर, नासिक (महाराष्ट्र)
5. श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा- बाबा हनुमान घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश).
6. श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा- दशाश्वमेघ घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश).
7. श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा- गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़ (गुजरात)
बैरागी वैष्णव संप्रदाय के 3 अखाड़े :
8. श्री दिगम्बर अनी अखाड़ा- शामलाजी खाकचौक मंदिर, सांभर कांथा (गुजरात).
9. श्री निर्वानी आनी अखाड़ा- हनुमान गादी, अयोध्या (उत्तर प्रदेश).
10. श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा- धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश).
उदासीन संप्रदाय के 3 अखाड़े :
11. श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा- कृष्णनगर, कीटगंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश).
12. श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड).
13. श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड).
गौरतलब है कि हिन्दू समाज में कुंभ मेले को बहुत ही पावन पर्व माना गया है. मान्यताओं के अनुसार यह पर्व किसी तीर्थ से कम नहीं है. कुंभ में अनेक कर्मकाण्ड सम्मिलित हैं जिसमें स्नान कर्म कुंभ के कर्मकाण्डों में से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. करोड़ों तीर्थयात्री पर्यटक और दर्शकगण कुंभ मेला में स्नान कर्म में हिस्सा लेते हैं.त्रिवेणी संगम पर पवित्र डुबकी लगायी जाती है. पवित्र कुंभ स्नानकर्म इस विश्वास के अनुसरण में किया जाता है कि त्रिवेणी संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाकर एक व्यक्ति अपने समस्त पापों को धो डालता है, स्वयं को और अपने पूर्वजों को पुनर्जन्म के चक्र से अवमुक्त कर देता है और मोक्ष को प्राप्त हो जाता है. स्नान - कर्मकाण्ड के साथ-साथ तीर्थयात्री पवित्र नदी के तटों पर पूजा भी करते हैं और विभिन्न साधुगण के साथ सत्संग में भी हिस्सा लेते हैं.
Source : News Nation Bureau