Naga Sadhus: नागा साधु एकांतवास में रहना पसंद करते हैं और सार्वजनिक जीवन से दूर रहते हैं. उनका जीवन रहस्यमय माना जाता है, क्योंकि वे समाज से अलग-थलग रहकर अपनी साधना करते हैं. महाकुंभ जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों में नागा साधु प्रमुख आकर्षण का केंद्र भी होते हैं. लेकिन, कुंभ समाप्त होने के बाद ये साधु अपने-अपने अखाड़ों के मठों, आश्रमों या गुप्त स्थानों पर लौट जाते हैं, जहां वे कठोर साधना और तपस्या में लीन रहते हैं.
कई नागा साधु कुंभ के बाद हिमालय की तपस्या के लिए चले जाते हैं. हिमालय को साधकों के लिए एक पवित्र स्थान माना जाता है और यहां शांति और एकांत में साधना करने के लिए कई गुफाएं और आश्रम हैं. कुछ नागा साधु अपने संबंधित अखाड़े लौट जाते हैं. अखाड़े उनके लिए एक सामाजिक और धार्मिक केंद्र होते हैं, जहां वे अन्य साधुओं के साथ रहते हैं और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेते हैं.कुछ नागा साधु अन्य तीर्थस्थलों जैसे काशी, हरिद्वार, ऋषिकेश, उज्जैन आदि की यात्रा करते हैं. ये स्थान धार्मिक महत्व के होते हैं और यहां साधुओं को शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है. महाकुंभ के बाद नागा साधु वन और जंगलों में भी चले जाते हैं, जहां वे एकांत में रहकर तपस्या करते हैं.
कुंभ के दौरान बहुत से लोग होते हैं जिससे साधना में बाधा आ सकती है. इसलिए कुंभ के बाद वे शांत और एकांत स्थानों पर जाकर साधना करते हैं.कुछ साधुओं को अपने अखाड़े के कामकाज में भी भाग लेना होता है. नागा साधु स्थायी रूप से एक जगह पर नहीं रहते हैं. वे साधुओं की तरह भिक्षा पर निर्भर रहते हुए, विभिन्न धार्मिक स्थलों और तीर्थयात्राओं पर घूमते रहते हैं. नागा साधु अपने जीवन को ध्यान, योग, और धर्म प्रचार में लगाते हैं. कुंभ के बाद भी नागा साधुओं का जीवन काफी कठिन होता है. वे अक्सर कठोर परिस्थितियों में रहते हैं और भोजन और पानी की कमी का सामना करते हैं.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)