Kawad yatra 2019: जानिए क्यों होती है कांवड़ यात्रा और कैसे हुई थी इसकी शुरुआत
सावन का महीना भगवान शिव का महीना होता है, इसलिए भक्तजन इस महीने में विशेष व्रत रखते हैं, और शिव की पूजा-अर्चना करते हैं
नई दिल्ली:
सावन महीने की शुरुआत कल यानी 17 जून से होने वाली है. इसी के साथ कल से कांवड़ यात्रा भी शुरू हो जाएगी. सावन की शुरुआत होते ही 17 जुलाई से कांवड़िए बम-बम भोले, हर-हर महादेव के जयकारे लगाते हुए नजर आने लगेंगे. दरअसल हिंदू धर्म में सावन महीना शिव भक्तों के लिए काफी अहम माना जाता है. इसी महीने में भक्त कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं. शिव भक्त इस दौरान लाखों की संख्या में हरिद्वार और गंगोत्री सहित अनेक धामों की यात्रा करते हैं. सावन का महीना भगवान शिव का महीना होता है, इसलिए भक्तजन इस महीने में विशेष व्रत रखते हैं, और शिव की पूजा-अर्चना करते हैं.
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क्या है कांवड़ यात्रा का महत्व?
सावन माह में लाखों शिवभक्त अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए कांवड़ यात्रा करते हैं और हरिद्वार से जल भर कर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं. दरअसल मान्यता है कि सावन मास में भगवान शिव अपने ससुराल दक्ष की नगरी हरिद्वार के कनखसल में निवास करते हैं. यही वजह है कि शिवभक्त कांवड़ यात्रा के दौरान गंगाजल लेने हरिद्वार जाते हैं.
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क्या है जल भरने का शुभ समय
कांवड़ में जल भरने का शुभ समय 18 जुलाई को द्वितीया तिथि के दौरान सुबह सुर्यदय से लेकर सूर्यास्त तक है. कांवड़िए अपने कांवड़ में जो जल भरकर लाते हैं उसे सावन की चतुर्दशी को भगवान शिव पर अर्पित करते हैं.
कैसे हुई थी कांवड़ यात्रा की शुरुआत?
मान्यता है कि दुनिया को बचाने के लिए समुद्र मंथन दौरान समुद्र से निकले विष को भगवान शिव ने पी लिया था जिसकी वजह से उनका शरीर जलने लगा. ऐसे उनकी इस जलन को शांत करने के लिए देवताओं ने भगवान शिव को जल अर्पित करना शुरू कर दिया. इसी मान्यता की वजह से कांवड़ यात्रा शुरू हुई.
इस बार कांवड़ यात्रा के लिए खास तैयारियां की गई हैं. यात्रा के पहले जर्जर सड़कें और विद्युत व्यवस्था दुरुस्त कर दी गई हैं. वहीं उत्तर प्रदेश में श्रद्घालुओं पर हेलिकॉप्टर से फूल बरसाने के आदेश दिए गए हैं. बताया ये भी जा रहा है कि कांवड़ यात्रा के दौरान दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पुलिस कंट्रोल रूम को उत्तर प्रदेश के कंट्रोल रूम से जोड़ा जाएगा, ताकि इन सभी राज्यों की पुलिस में समन्वय रहे. इसके अलावा विशेष तौर पर उत्तराखंड सरकार से भी विस्तार से चर्चा की गई है, क्योंकि लाखों की संख्या में शिवभक्त हरिद्वार और गोमुख जाते हैं.
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