krishna Janmashtami 2025 : हर साल देश भर में श्रद्धा और उल्लास के साथ श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है. मान्यता है कि द्वापर युग में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्य रात्रि में मथुरा की जेल में भगवान श्री कृष्ण ने देवकी और वसुदेव के घर जन्म लिया था. तभी से यह तिथि कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है. साल 2025 में जन्माष्टमी का व्रत 15 अगस्त को रखा जाएगा. जबकि 16 अगस्त को इस मंदिरों में जन्मोत्सव मनाया जाएगा. इस दिन लड्डू गोपाल की पूजा और व्रत करने से विशेष पुण्य और कृपा प्राप्त होती है. हालांकि शास्त्रों में व्रत के लिए कुछ नियम बताए गए हैं जिसका पालन करना जरूरी है. वरना व्रत का पूरा फल नहीं मिलता. सबसे पहले अष्टमी तिथि पर ब्रह्मचर्य का पालन करें और दिन में सोने से बचें.
व्रत में अन्न और नमक का सेवन वर्जित
इस दिन व्रत में अन्न और नमक का सेवन वर्जित है. साथ ही तमासिक भोजन, मांस और मदिरा का सेवन भी वर्जित है. व्रत के दौरान फल, दूध, दही, माखन, कुट्टू के आटे की रोटी, साबूदाना, शकरकंद, नारियल पानी और ड्राई फ्रूट्स का सेवन किया जा सकता है. व्रत रात 12:00 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के बाद ही करना चाहिए और कोशिश करें कि सूर्योदय तक व्रत का पालन हो. जन्माष्टमी के दिन सुबह शाम भगवान की पूजा करनी चाहिए और पूजा के दौरान जो भोग लगाएं उसे ही प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए. इस दिन गुस्सा, नकारात्मक बातें और विवादों से दूर रहें. साथ ही बाल नखून और दाढ़ी काटना अशुभ माना जाता है. व्रत करने से पहले दान पुण्य या गौस सेवा करना शुभ होता है और इससे पुण्य की प्राप्ति होती है. जन्माष्टमी के दिन काले कपड़े ना पहने और ना ही काले रंग की कोई वस्तु इस्तेमाल करें.
पूजा करते समय महिलाओं को सिर ढकना चाहिए
पूजा करते समय महिलाओं को सिर ढकना चाहिए और खुले बालों में पूजा नहीं करनी चाहिए क्योंकि इसे अशुभ माना जाता है. व्रत के बाद घर के बुजुर्गों और गुरुजनों का आशीर्वाद लेना ना भूलें. इन सभी नियमों का पालन करने से व्रत का पूरा फल मिलता है. मन को शांति मिलती है और जीवन में सुख समृद्धि आती है. यह दिन केवल व्रत रखने वालों के लिए ही नहीं बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए खास है जो भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति भाव रखता है. चाहे कोई भी व्रत ना रखें लेकिन इस दिन नियमों का पालन और कृष्ण भक्ति करने से शुभ फल प्राप्त होता है. जन्माष्टमी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है बल्कि यह भगवान के प्रेम, स्नेह और धर्म की रक्षा के संदेश को याद करने का अवसर है.