हिंदू मान्यता के अनुसार, विवाहित महिला द्वारा मांग में सिंदूर भरने का रिवाज है, क्योंकि सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि किन्नर समाज आखिर किसके नाम का सिंदूर अपनी मांग में लगाते हैं. सिर्फ सिंदूर ही नहीं बल्कि वह सोलह श्रृंगार भी करते हैं. वहीं काफी लोगों के मन में सवाल उठता है कि आखिर किसके नाम का वो सोलह श्रृंगार करते हैं और किसके नाम का सिंदूर लगाते हैं. आइए आपको बताते हैं इसके बारे में.
कौन हैं इरावन देवता
अरावन, अर्जुन और अनकी पत्नी नाग कन्या उलूपी की संतान हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध से पहले पांडवों ने युद्ध में विजय के लिए मां काली की पूजा की थी. इस पूजा को सम्पन्न करने के लिए एक राजकुमार की बलि जरूरी थी. तब अरावन बलि देने के लिए तैयार हो गए, लेकिन उनकी यह शर्त थी कि वह अविवाहित नहीं मरना चाहते.
श्री कृष्ण ने निकाला समाधान
तब भगवान श्री कृष्ण ने इसका समाधान निकाला. उन्होंने इरावन की इच्छा पूर्ति के लिए मोहिनी रूप धारण किया और इरावन से विवाह किया. अगले दिन इरावन की बलि दे दी गई, जिसपर श्री कृष्ण ने विधवा बनकर विलाप भी किया. उसी घटना को बाद से किन्नर इरावन को अपना भगवान माना और इस परम्परा को आगे बढ़ाया.
किसके नाम का सजाते हैं सिंदूर
किन्नर समाज में अरवान देवता से विवाह और उसके बाद विधवा बनने के बाद भी किन्नर अपनी मांग भरते हैं. दरअसल किन समाज में गुरु को बहुत ही महत्व दिया जाता है. ऐसे में किन्नर द्वारा अपने गुरु की लंबी उम्र के लिए सिंदूर लगाया जाता है. माना जाता है कि किन्नर जिस घराने में शामिल होते हैं, उस घराने के गुरु के लिए अपनी मांग में सिंदूर लगाते हैं. जब तक किन्नर के गुरु जीवित रहते हैं, तब तक वह मांग में उनके नाम का सिंदूर अपनी मांग में सजाते हैं.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)