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जिनके बिना संभव नहीं था लंका कांड, जानें वीर बजरंगी श्री हनुमान कैसे बनाएंगे आपके बिगड़े काम

कलियुग में मान्यता है कि एक मात्र श्री हनुमान ही वो शक्ति है, जिनकी कृपा से इंसान का उद्धार संभव है.

Updated on: 08 Jan 2019, 09:30 AM

नई दिल्‍ली:

पवनपुत्र हनुमान को श्री राम का अनन्य भक्त माना जाता है. कहते हैं श्री हनुमान सदैव ही राम भक्ति में लीन रहते हैं. मान्यता है कि पवनपुत्र हनुमान को राम नाम की धुन के अलावा कुछ सुनाई नहीं देता. इसिलिए श्री हनुमान को भगवान राम का सबसे प्रिय माना जाता है. कहते हैं जो भी भक्त श्री हनुमान के पास अपनी बिगड़ी लेकर आता है. उसे श्री हनुमान सीधे भगवान राम तक पहुंचा देते हैं और जिसकी बिगड़ी लेकर स्वयं श्री हनुमान भगवान के पास पहुंचते हैं उनके तो सभी बिगड़े काम अपने आप ही बन जाते हैं. कालचक्र के चार युगों में से एक कलियुग में मान्यता है कि एक मात्र श्री हनुमान ही वो शक्ति है, जिनकी कृपा से इंसान का उद्धार संभव है. श्री हनुमान इस कलियुग में सबसे ज्यादा जाग्रत और साक्षात रूप में निवास करते हैं. कलियुग में हनुमान की भक्ति ही लोगों को दुख और संकट से बचाने में सक्षम हैं.

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हिंदू धर्मग्रंथों में श्रीहनुमान को वानर रूप में दर्शाया गया है. रामभक्‍त हनुमान अत्यंत बलशाली हैं. उनके कंधे पर सदैव ही जनेऊ लटका रहता है. मस्तक पर स्वर्ण मुकुट और शरीर पर स्वर्ण आभुषण धारण करने वाले श्री हनुमान के एक हाथ में गादा सुशोभित है. वहीं वानर के समान उनकी एक लंबी पूंछ भी है. .मान्यताओं के अनुसार राजा बालि का वध, लंका दहन, रावण वध, श्री हनुमान के बिना संभव नहीं थे.

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पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार वनवास के दौरान जब रावण देवी सीता का हरण कर उन्हें लंका ले जा रहा था. तब माता सीता ने एक पोटली में अपने आभुषण बांधकर धरती पर फेकें थे. जिन्हें श्री हनुमान किष्किंधा ले आए थे. माना जाता है कि उन्हीं आभुषणों की पहचान कर भगवान राम को माता सीता का सुराग मिला था. और श्री हनुमान की सहायता से ही भगवान राम को देवी सीता के लंका में होने का पता चला था.

मान्यताओं के अनुसार देवी सीता श्रीराम के वियोग में लंका में विकल पड़ीं थीं. उस समय श्री हनुमान ने उन्हें प्रभु श्री राम की अंगुठी देकर उन्हें धीरज रख प्रभु के आने का संकेत दिया था. उसी दौरान हनुमान ने राक्षसराज रावण को प्रभु श्री राम की शक्ति से भी अवगत करवाया. लेकिन अहंकार में चूर रावण ने श्री हनुमान की एक न सुनी और उनकी पूंछ में आग लगा दी. जिसके बाद श्री हनुमान ने लंका को जलाकर राख कर दिया.

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लंका दहन के बाद जब श्री हनुमान माता सीता का संदेश लेकर किष्किंधा लौटे तब उन्हीं की सहायता से प्रभु राम ने वानर सेना के साथ लंका का रुख किया. लंका कांड में श्री हनुमान की अहम भुमिका रही है. मान्यता है कि उनके बिना लंका कांड संभव नहीं था. लंका पहुंचने के बाद श्री राम की सेना और रावण की सेना के बीच भीषण युद्ध हुआ. जिसमे पहले रावण का भाई कुंभकरण मारा गया. कहते हैं जब मेघनाथ और लक्ष्मण जी के बीच युद्ध हुआ तब मेघनाथ ने मायावी शक्तियों की सहायता से लक्ष्मण को अर्धमृत कर दिया था. तब श्री हनुमान संजीवनी लेकर आए जीसकी वजह से लक्ष्मण जी को एक दूसरा जीवन मिला.

अंत में राम रावण युद्ध हुआ जिसमें विभीषण की सहायता से प्रभु राम ने रावण का वध कर विभीषण को लंका का राज पाठ सौंपा. मान्यता है कि रावण वध के बाद श्री राम का वनवास समाप्त हुआ और वो अयोध्या को पधारे. जिसके बाद जोरों शोरों से पभु राम का राज तिलक कर उन्हें अयोध्या का राज पाठ सौंपा गया.

राजा राम के राज तिलक में उनके सभी सगे संबंधी पहुंचे..राज तिलक के बाद भगवान राम ने श्री हनुमान को छोड़ बाकि सभी विभीषण, जामवंत, अंगद, सुग्रीव को भेंट करते हुए अयोध्या से विदा कर दिया. .तभी अयोध्यावासियों में ये जानने की उत्सुकता बढ़ी की भगवान राम ने सभी को तो विदा कर दिया केवल श्री हनुममान को विदा क्यों नहीं किया. तभी अयोध्यावासियों ने श्री हनुमान को भेजने की योजना बनाई.

सबसे पहले सभी देवी सीताके पास पहुंचे और उन्से कहा कि आ श्री हनुमान को अयोध्या से जाने के लिए कहे..तभी माता सीता ने कहा कि मैं तो लंका में विकल पड़ी थी, मेरा तो एक एक दिन एक एक वर्ष के समान बीत रहा था, वो तो हनुमान जी थे,जो प्रभु की मुद्रिका लेके आए. और मुझे धीरज बंधवाया कि.

कछुक दिवस जननी धरु धीरा।
कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।

निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।
तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥

इसका अर्थ है कि हे माता! मैं आपको अभी यहां से ले जाऊं, पर श्री रामचंद्रजी की शपथ है, मुझे प्रभु की आज्ञा नहीं है..हे माता! कुछ दिन और धीरज धरो। श्री रामचंद्रजी वानरों सहित यहाँ आएंगे और राक्षसों को मारकर आपको ले जाएंगे.

लिहाजा मैं तो अपने बेटे से बिल्कुल भी नहीं कहूंगी. कि वो अयोध्या छोड़कर जाए.

इसके बाद सभी लक्ष्मण जी के पास पहुंचे और उनसे कहा कि आप श्री हनुमान को यहां से जाने के लिए कहे. तभी लक्ष्मण जी ने कहा.

प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस।।

मैं तो लंका की रणभूमि में वैसे ही मरणासन्न अवस्था में पड़ा था, पूरा रामदल विलाप कर रहा था. तभी हनुमान जी संजीवनी लेकर आए. ये तो जो खड़ा है, वो हनुमानजी का लक्ष्मण है. तो मैं किस मुंह से हनुमान को यहां से जाने के लिए कहुं.

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इसके बाद सभी श्री राम के भाई भरत के पास गए और ुनसे कहा की वो श्री हनुमान को यहां से जाने कि लइ बोलें. इसे सुनकर भरत रोने लगे और कहा कि श्री ाम को अयोध्या से निकलवाने का कलंक तो वैसे ही मुझपर लगा हुआ है. अब श्री हनुमान को निकालने का कलंक ना लगाओ. .साथ ही उन्होंने कहा.

बीतें अवधि रहहिं जौं प्राना।
अधम कवन जग मोहि समाना॥
रिपु रन जीति सुजस सुर गावत।
सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥

इसका अर्थ है कि मैंने तो नंदीग्राम में ही अपनी चिता लगा ली थी, वो तो हनुमानजी थे जिन्होंने आकर ये खबर दी कि मेरे प्रभु माता सीता और लक्ष्मण सहित अयोध्या पधार रहे हैं. तो मैं तो बिलकुल उन्हे यहां से जाने के लिए नहीं बोलूंगा.

इसके बाद सबकी नजर शत्रुघ्न की ओर मुड़ी. तो शत्रुघ्न बोले. मैंने तो पूरी रामायण में कहीं नहीं बोला, तो आज ही क्यों बुलवा रहे हो, और वो भी हनुमानजी को अयोध्या से निकलने के लिए, जिन्होंने ने माता सीता, लखन भैया, भरत भैया सब के प्राणों को संकट से उबारा हो. तो मैं उन्हें यहां से जानेके लिए नहीं कहूंगा.

अंत में देवी सीता . भगवान राम के पास गई और कहा. प्रभु! आप तो तीनों लोकों के स्वामी है, और देखती हूं आप हनुमानजी से सकुचाते है।और आप खुद भी कहते हो कि. !

प्रति उपकार करौं का तोरा।
सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥

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आखिर आप के लिए क्या अदेय है. तभी श्री राम ने कहा की देवी मैं श्री हनुमान का कर्जदार हूं. और हनुमान का कर्ज उतारना आसान नहीं है. क्योंकि कर्जा उतारना भी तो बराबरी का ही पड़ेगा. तभी देवी सीता ने ये जानने की इच्छा जताई की आखिर श्री हनुमान का कर्जा उतरेगा कैसे. तभी श्री राम ने कहा कि
पहले हनुमान विवाह करें,

लंकेश हरें इनकी जब नारी।

मुदरी लै रघुनाथ चलै,निज पौरुष लांघि अगम्य जे वारी।

अयि कहें, सुधि सोच हरें, तन से, मन से होई जाएं उपकारी।

तब रघुनाथ चुकायि सकें, ऐसी हनुमान की दिव्य उधारी।।

इसका अर्थ है कि देवी! इतना आसान नहीं है, हनुमान जी का कर्जा चुकाना यदि आप कहती हो तो कल राज्य सभा में बोलूंगा कि हनुमानजी भी कुछ मांग लें. दूसरे दिन राज्य सभा में सब इकट्ठा हुए और सबमे ये जानने की उत्सुकता थी कि आखिर श्री हनुमान क्या मांगेंगे. सभा में श्री राम ने हनुमास सेकहा कि
हे हनुमान सब लोगों ने मेरी बहुत सहायता की और मैंने, सब को कोई न कोई पद दे दिया. तो अब तुम भी अपनी इच्छा बताओ. तभी श्री हनुमान ने कहा कि हे प्रभु आपने सभी को पद दिया. तो अगर मैं दो पद मांगू तो. इसके बाद श्री हनुमान ने प्रभु राम के दोनों चरण पकड़ लिए और कहा प्रभु! हनुमान को तो बस यही दो पद चाहिए.

हनुमत सम नहीं कोउ बड़भागी।
नहीं कोउ रामचरण अनुरागी।।

तभी श्री राम ने भरत से कहा. हम चारों भाई चाहे जितनी बार भी जन्म लेे लें पर तब भी हनुमान के ऋण से उऋण नहीं हो सकते. श्री हनुमान सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि एक कथा. एक कहानी हैं. जिनका जितना अद्भूत रूप है उतनी ही अद्भूत थी उनकी लीलाएं. श्री हनुमान एक मात्र ऐसे देवता हैं जिनके दर्शन मात्र से ही भक्तों की जीवन खुशियों से भर जाती है.