Mahakumbh 2025: महाकुंभ 2025 में दिखेगा 151 फीट ऊंचा त्रिशूल, तेज तूफान भी नहीं डिगा सकेगा इसे

Mahakumbh 2025: 13 जनवरी 2025 से महाकुंभ की शुरुआत हो रही है. लगभग 45 दिनों तक चलने वाले इस महा मेले में इस बार 151 फीट का त्रिशूल आकर्षण का केंद्र रहने वाला है.

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Inna Khosla
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world largest trishul

world largest trishul Photograph: (News Nation)

Mahakumbh 2025: पौष माह की पूर्णिमा तिथि से महाकुंभ 2025 शुरू होने जा रहा है. प्रयागराज में होने वाले इस भव्य आयोजन में दुनिया का सबसे बड़ा त्रिशूल स्थापित किया जाएगा, जिसकी ऊंचाई 151 फीट होगी. यह त्रिशूल न केवल अपनी ऊंचाई और भव्यता के लिए खास है, बल्कि इसे इतनी मजबूती से बनाया गया है कि यह भूकंप और तेज तूफानों का भी सामना कर सकेगा. आधुनिक तकनीक और परंपरागत शिल्पकला का बेहतरीन उदाहरण कहा जाने वाला ये त्रिशूल इस तरह से डिजाइन किया गया है कि किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति में स्थिर रहेगा. निर्माण में विशेष प्रकार की सामग्री और तकनीकों का उपयोग किया गया है जो इसे भूकंप-रोधी और अत्यंत टिकाऊ बनाती है.

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दुनिया के सबसे ऊंचे त्रिशूल की खासियत ( World's Largest Trishul of Lord Shiva)

इस त्रिशूल को छह साल पहले जूना अखाड़े के मौज गिरी आश्रम में स्थापित किया गया था, जिसका लोकार्पण तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने 13 फरवरी 2019 को किया था. इसकी खासियत की बात करें तो भगवान शिव का प्रतीक ये त्रिशूल 151 फीट ऊंचा है और इसका वजन 31 टन से अधिक है, जिसे स्टील समेत कई धातुओं से बनाया गया है.प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए इसके नीचे 80 फीट गहराई तक पाइलिंग की गई है.  दुनिया के सबसे ऊंचे इस त्रिशूल की रोजाना पूजा-अर्चना की जाती है. 

हिंदू धर्म में त्रिशूल का महत्व (Significance of Trishul in Hinduism)

त्रिशूल हिंदू धर्म में भगवान शिव का प्रमुख प्रतीक है और इसे शक्ति, संतुलन और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है. महाकुंभ जैसे पवित्र आयोजन में इस त्रिशूल की स्थापना श्रद्धालुओं के लिए विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखती है. ये त्रिशूल शिवभक्तों के लिए आस्था का केंद्र बनेगा और लाखों लोग इसे देखने के लिए उमड़ेंगे.

इस त्रिशूल को तेज तूफान भी नहीं डिगा सकेगा

इस त्रिशूल को स्थापित करने के पीछे का उद्देश्य न केवल धार्मिक आस्था को सशक्त करना है बल्कि भारत की वास्तुकला और इंजीनियरिंग की प्रगति को भी प्रदर्शित करना है. इसका (Trishul) निर्माण स्थानीय कारीगरों और तकनीकी विशेषज्ञों के सहयोग से किया जा रहा है. इसकी नींव इतनी मजबूत है कि यह 150 किमी प्रति घंटे की गति से चलने वाले तूफानों का भी सामना कर सकेगा.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

 

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