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दशहरा के दिन की बात है खास, इस दिन जानें क्या है सिंदूर खेला की रस्म का इतिहास?

नवरात्रि के अंतिम दिन बंगाली समुदायों की लेडीज मां दुर्गा को संदूर अर्पित करती है. जिसे सिंदूर खेला के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन सभी महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं.

Updated on: 11 Oct 2021, 11:43 AM

highlights

  • बंगाल में आखिरी दिन पर दुर्गा पूजा मनाई जाती है.
  • दशहरे के दिन बंगाली समुदायों की महिलाएं मां दुर्गा को संदूर अर्पित करती है. जिसे सिंदूर खेला के नाम से भी जाना जाता है.
  • इस दिन बड़े-बड़े पंडाल लगाए जाते हैं. जिनमें देवी मां की आकर्षक मूर्तियां देखती ही बनती है.

पश्चिम बंगाल:

नवरात्रि के दिन जैसे-जैसे बीत रहे हैं. वैसे ही दशहरे के त्योहार के दिन नजदीक आ रहे हैं. हर जगह जोरों-शोरों से रामलीला चल रही है. लोग भी बढ़-चढ़कर रामलीला में हिस्सा ले रहे हैं. साथ ही बाजारों की रौनक भी देखने लायक है. ये तो सभी जानते हैं कि जहां एक तरफ हर साल शारदीय नवरात्रों के आखिरी दिन दशहरा मनाया जाता है. वहीं बंगाल में आखिरी दिन पर दुर्गा पूजा मनाई जाती है. इस दिन बंगाली समुदायों की लेडीज मां दुर्गा को संदूर अर्पित करती है. जिसे सिंदूर खेला के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन सभी महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं. इस खास त्योहार को मां की विदाई के रूप में मनाया जाता है. बंगाल में इस त्योहार को बड़ी ही भव्यता के साथ मनाया
जाता है. तो चलिए आपको विस्तार से बताते है कि आखिर इस सिंदूर खेला का महत्व क्या है. साथ ही आपको इस दिन की कुछ खास विशेषताएं बताते हैं कि आखिर ये सिंदूर खेला मनाया क्यों जाता है. 

                                     

ऐसे तो सिंदूर खेला की रस्म सालों से चली आ रही है. खासतौर से बंगाली समाज में इसका विशेष महत्व है. माना जाता है कि मां दुर्गा साल में एक ही बार अपने मायके आती हैं. वह अपने मायके में 10 दिनों तक रुकती हैं. इन्हीं 10 दिनों को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है. आपको बता दें कि सिंदूर खेला की रस्म पश्चिम बंगाल में ही पहली बार शुरू हुई थी.  

                                       

ये कहा जाता है कि लगभग 450 साल पहले बंगाल में दुर्गा विसर्जन से पहले सिंदूर खेला का त्योहार मनाया गया था. इस दिन महिलाएं पान के पत्तों से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श करते हुए उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाती है. इस दिन वो अपने सुहाग की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं. क्योंकि इस त्योहार को मनाने के पीछे उनकी यही मान्यता है कि ऐसा करने से मां दुर्गा उनके सुहाग की उम्र लंबी कर देंगी. इस दिन मां को पान और मिठाइयों का भोग भी लगाया जाता है. साथ ही ये भी माना जाता है कि भगवान इससे प्रसन्न होकर उन्हें सौभाग्य का वरदान देंगे. साथ ही उनके लिए स्वर्ग का रास्ता भी बनाएंगे. बता दें, महिलाएं बंगाल में इस त्योहार को दुर्गा विसर्जन या दशहरा के दिन ही मनाती हैं.

                                         

बंगाल के अलग-अलग शहरों में होने वाली इस दुर्गा पूजा की रौनक तो देखते ही बनती है. बड़े-बड़े पंडाल लगाए जाते है. जिनमें मां की आकर्षक मूर्तियां देखती ही बनती है. पूरा बंगाली समाज बड़े ही हर्षोल्लास से देवी दुर्गा की पूजा करता है. बता दें, कि नवरात्रि के नौ दिन के पूजा-पाठ के बाद दशमी के दिन ये सिंदूर खेलने की परंपरा है. सिंदूर खेल के दिन बंगाली समुदाय में धुनुची नृत्य करने की परंपरा है. बता दें, ये खास तरह का नृत्य मां दुर्गा को खुश करने के लिए किया जाता है.