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Religious History of Varanasi: वाराणसी को क्यों कहा जाता है बनारस या काशी, बेहद रोचक है इसका धार्मिक इतिहास 

Religious History of Varanasi: वाराणसी को बनारस और काशी भी कहा जाता है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों कहा जाता है. इसका कारण क्या है और कैसे समय के साथ-साथ नाम परिवर्तन हुए आइए जानते हैं.

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Inna Khosla
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Religious History of Varanasi

Religious History of Varanasi:( Photo Credit : News Nation)

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Religious History of Varanasi: बनारस को वाराणसी और काशी के नाम से क्यों जाना जाता है इतिहासकारों के मुताबिक वाराणसी का सबसे प्राचीन नाम काशी है. इस शहर को करीब 3000 साल पहले से इस नाम से पुकारा जाता है. माना जाता है कि प्राचीन काल में हुए राजा काशा के नाम पर इस शहर का नाम काशी पड़ा है. काशी को कई बार काबा से भी संबोधित किया जाता है. काशि का मतलब होता है चमकता हुआ. भगवान शिव की नगरी हमेशा चमकती रहती है जिस वजह से इसे रौशनी का शहर भी कहा गया और यही से इसका नाम काशी हो गया. वही जो बनारस नाम है वो मुगल कालीन नाम है. जब मुस्लिम आक्रांताओं ने यहां पर हमला किया तो इस शहर के आर्किटेक्चर से वो काफी ज्यादा इम्प्रेस हुए. उस समय के जो मुस्लिम कवि या शायर थे, उन्होंने जब यहां की खूबसूरती संपन्नता और खुशहाली को देखा तो उन्होंने इस शहर को परिभाषित करते हुए कहा रस या सरबत से डूबा हुआ एक ऐसा शहर जो अपने आप से बना हुआ है यानि कि बना हुआ रस, आम बोलचाल की भाषा में जब इसका इस्तेमाल होने लगा तो वहां से बनारस नाम निकलकर आया.

साल 1956 तक इस शहर को बनारस के नाम से ही जाना जाता था. इसके बाद इसका नाम बदल दिया गया और दो नदियों वरुणा व असी नदी के बीच स्थित होने की वजह से इस शहर का नाम वाराणसी रख दिया गया. जो वर्तमान में इस शहर का ऑफिशियल नेम है. हालांकि, आज भी लोगों के बीच बनारस नाम काफी ज्यादा पॉपुलर है.  वाराणसी के इतिहास की अगर बात की जाए तो वाराणसी यानी की काशी प्राचीन समय में रिलीजियस सेंटर के साथ साथ इंडस्ट्रियल सेंटर भी था. जो अपने रेशमी कपड़े, इत्र, हाथी दांत व मूर्ति कला के काम के लिए जाना जाता था. वहीं 600 ईसा पूर्व के समय यानी महात्मा बुद्ध के समय काशी धार्मिक, शैक्षिक व आर्टिस्टिक अक्टिविटीज का केंद्र था. इतिहास के पन्नों को जब आप खंगालेंगे तो आपको पता चलेगा कि 1194 बाद से जब मुस्लिम आक्रांताओं ने यहां पर आक्रमण किया तो उन्होंने धीरे धीरे काशी को नष्ट करना शुरू कर दिया. हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए उस समय मुस्लिम शासकों द्वारा यहां के पवित्र हिंदू मंदिरों को भी नष्ट किया गया. ये वो समय था जब क्रूर मुस्लिम आक्रांताओं के डर से काशी में जितने विद्वान थे वो डरकर दूसरी जगह पर भागने पर मजबूर हो गए थे.

हालांकि, सोलहवीं शताब्दी में मुगल सम्राट अकबर ने इस शहर की धार्मिक व सांस्कृतिक विरासत को सहेजने में थोड़ी बहुत मदद की, लेकिन जब उसके वंशज औरंगजेब का शासनकाल आया तब उसने फिर से हिंदू मंदिरों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया. 9 अप्रैल 1669 का समय था जब औरंगजेब ने हिंदुओं के मंदिरों के साथ साथ उनके विद्यालयों को भी गिराने का आदेश दिया था. औरंगजेब आदेश को काशी, मथुरा के मंदिरों से लेकर उसके सल्तनत के अधीन आने वाले सभी 21 सूबे में लागू कर दिया गया. औरंगजेब के इस आदेश का जिक्र उसके दरबारी लेखक साकिब मुसाईद खान ने अपनी किताब मुसाहिर आलमगिरी में किया है. 1965 में पब्लिश वाराणसी गैजेटर के पेज नंबर 57 पर इस आदेश का जिक्र है. 

इतिहासकारों का मानना है कि औरंगजेब के इस आदेश के बाद सोमनाथ, काशी विश्वनाथ, केशव देश समेत सैकड़ों मंदिरों को गिरा दिया गया था. हालांकि सत्रहवीं शताब्दी में जब मराठों का शासन आया तब काशी की धार्मिक वो सांस्कृतिक विरासत को संभालने की प्रक्रिया शुरू हुई और ब्रिटिश शासन के दौरान यानी कि अट्ठारहवीं शताब्दी तक आते आते यह शहर रिलीजियस सेंटर के साथ साथ कमर्शियल सेंटर बन गया और फिर आया 1910 का समय जब ब्रिटिशर्स द्वारा वाराणसी को एक नया भारतीय राज्य बना दिया गया, जो 1949 तक बना रहा और इसके बाद 15 अक्टूबर 1949 को आधिकारिक तौर पर बनारस को उत्तर प्रदेश का हिस्सा बना दिया गया. 24 मई 1956 को बनारस का नाम बदलकर वाराणसी कर दिया गया. उस समय उत्तर प्रदेश में सम्पूर्णानंद मुख्यमंत्री थे और उनका खुद का रिश्ता बनारस से था. उन्होंने बनारस की जगह शहर के नाम के लिए वाराणसी का चयन किया. आज शहर और जिले के तौर पर वाराणसी नाम ऑफिशियली अस्तित्व में है, लेकिन शहर के लोगों के लिए बनारस और काशी आज भी दिल और जुबान पर है. यही वजह है कि वाराणसी के लोक सभा चुनाव जीतने के बाद अपने पहले कार्यकाल में बतौर पी एम नरेंद्र मोदी जी जापान गए. तो उन्होंने काशी को जापान के प्राचीनतम शहर क्योटो के तौर पर विकसित करने के समझौते पर हस्ताक्षर किए और इसी के तहत कई बड़ी योजनाएं भी लागू की. जहां मोदी जी को काशी के महत्त्व का एहसास है, वही वाराणसी के लोगों के लिए आज भी तीनों लोकोंसे न्यारी काशी ही है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

Source : News Nation Bureau

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