Karl Marx Thought: कार्ल मार्क्स ने धर्म को अफीम क्यों कहा था? जानें उनके विचारों का समाज पर प्रभाव

Karl Marx Thought: धर्म के नाम पर दुनियाभर में विवाद हो रहे हैं. मार्क्स अपने समाजवाद के सिद्धांत के लिए सबसे प्रसिद्ध हैं, लेकिन उन्होने धर्म को अफीम क्यों कहा और क्या धर्म दुनिया का नुकसान कर रहा है आइए जानते हैं.

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Inna Khosla
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Karl Marx Thought

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Karl Marx Thought: कार्ल हेरिक मार्क्स को समाजवाद का जनक कहा जाता है. अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और राजनीति के सिद्धांतों की उनकी समझ को मार्क्सवाद कहा जाता है. कार्ल मार्क्स का जन्म 1818 में रूस के जर्मनी में हुआ था. उनका मानना था कि पूंजीवाद स्वाभाविक रूप से शोषणकारी है क्योंकि यह पूंजी के मालिकों के लिए लाभ उत्पन्न करने के लिए श्रमिक वर्ग के शोषण पर निर्भर करता है. उनका नारा था, "हर व्यक्ति से उसकी क्षमता के अनुसार, और हर व्यक्ति को उसकी आवश्यकता के अनुसार." मार्क्स के अनुसार, दुनिया में अशांति और असंतोष का मुख्य कारण अमीर और गरीब के बीच का वर्ग संघर्ष है. उन्होंने यह भी कहा कि उत्तराधिकार की प्रथा को समाप्त किया जाना चाहिए. मार्क्स का विचार था कि आर्थिक और सामाजिक कल्याण के लिए एक शांतिपूर्ण क्रांति होनी चाहिए, और अगर इसमें कोई बदलाव न हो, तो सशस्त्र क्रांति की जानी चाहिए.

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मार्क्स की शिक्षाओं का प्रभाव (Influence of Marx's teachings)

मार्क्स के विचारों का श्रमिक आंदोलन के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ा, और आज भी विद्वान और कार्यकर्ता उनके सिद्धांतों का अध्ययन करते और उन पर बहस करते रहते हैं. मार्क्स के कुछ अमूल्य विचार जिन्होंने मानव इतिहास को प्रभावित किया-

  • धर्म जनता के लिए अफीम है.
  • इतिहास खुद को दोहराता है, पहले एक त्रासदी के रूप में और फिर एक मजाक के रूप में.
  • दुनिया के श्रमिकों, एक हो जाओ, तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है, सिवाय अपनी जंजीरों के.
  • सामाजिक प्रगति को मापा जा सकता है कि समाज में महिलाओं को किस स्थान पर रखा गया है.

मार्क्स की सोच और समाजवाद की दिशा (What was Karl Marx's view of socialism?)

मार्क्स का मानना था कि क्रांति इतिहास का इंजन है, और लोकतंत्र समाजवाद की ओर ले जाने का मार्ग है. उन्होंने पूंजीवाद को मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया और कहा कि कम्युनिज्म का सिद्धांत एक वाक्य में व्यक्त किया जा सकता है: "सभी निजी संपत्ति को समाप्त कर देना चाहिए." मार्क्स के अनुसार जनता की खुशी की पहली आवश्यक शर्त धर्म का अंत है. उनका कहना था कि "पूरे यूरोप पर एक भयानक छाया मंडरा रही है - वह छाया साम्यवाद की है." उन्होंने यह भी कहा, "मनुष्य अपनी खुद की इतिहास बना सकता है, लेकिन वह इसे अपनी इच्छानुसार नहीं बना सकता."

मार्क्स के क्रांतिकारी विचार (revolutionary ideas of Marx)

मार्क्स के अनुसार, पूंजीपति वर्ग की ताकत मशीनें हैं, जो श्रमिक वर्ग के विद्रोह को दबाने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं. उन्होंने कहा, "श्रमिकों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ने के साथ ही मजदूरी घटती जाती है." उनके अनुसार, पूंजीपति व्यक्ति एक तर्कसंगत कंजूस होता है जबकि कंजूस व्यक्ति एक पागल पूंजीपति होता है.

मार्क्स का विचार था कि समाज व्यक्तिगत व्यक्तियों से नहीं बना होता, बल्कि उनके बीच के संबंधों का प्रतिनिधित्व करता है. उन्होंने कहा, "धर्म एक जीते-जागते प्राणी का विलाप है, यह एक क्रूर संसार का दिल और निस्पंद परिस्थितियों का जीवन है. यह जनता के लिए अफीम है."

समाजवाद और मार्क्सवाद का सार (The essence of socialism and Marxism)

मार्क्स के अनुसार पूंजी श्रमिक के लिए सेहत या विनाशकारी हो सकती है. यह प्राकृतिक कानूनों के ऊपर नहीं जा सकती जब तक समाज उस पर दबाव न डाले. मार्क्स ने यह भी कहा, इतिहास कुछ नहीं करता, न ही उसके पास अपार संपत्ति होती है, न ही वह युद्ध लड़ता है, यह मनुष्य होते हैं जो वास्तविक रूप से जीवित होते हैं और यह सब करते हैं. मार्क्स का कहना था कि इतिहास में बड़ा सामाजिक बदलाव महिलाओं के बिना संभव नहीं है और महिलाओं की सामाजिक स्थिति ही सामाजिक प्रगति का सही मापदंड है. मार्क्स के विचार आज भी समाजवाद, कम्युनिज्म, और सामाजिक न्याय की अवधारणाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उनके सिद्धांतों पर बहस और चर्चा होती रहती है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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