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Machail Chandi Mata
मचैल चंडी माता मंदिर के जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के मचैल गांव में है. इसे जम्मू कश्मीर का चमत्कारी मंदिर भी माना जाता है. इस मंदिर में दर्शन के लिए हर साल देशभर से लाखों लोग आते हैं. वहीं गुरुवार दोपहर इसी इलाके में बादल फटा है. किश्तवाड़ से 95 किलोमीटर की दूरी पर भूर्ज और भोट नाले के बीच में बसा मिचैल गांव ऊंची पहाड़ियों के बीच प्रकृति की गोद में बसा हुआ है. वहीं रिपोर्ट्स के मुताबिक माना जा रहा है कि अब तक 12 लोगों की मौत हो गई है और 300 लोगों के इस रूट पर फंसे होने की आशंका है. हालांकि अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हुई है. हर साल हिंदू कैलेंडर के भाद्रपद (भादो) महीने में यह यात्रा चलती है. यह महीना अमूमन ग्रैगेरियन कैलेंडर में अगस्त का महीना होता है.
इस दिन से शुरु हुई यात्रा
चंडी माता मचैल यात्रा के दौरान श्रद्धालु चेनाब नदी के किनारे-किनारे जाते हैं. माता मचेल देवी की यात्रा 25 जुलाई से शुरु हुई थी, जो 5 सितंबर तक चलेगी. इस यात्रा में कई पड़ाव हैं. किश्तवाड़ से यह यात्रा पाडर और चिशोती होते हुए माता के मंदिर तक पहुंचती है. किश्तवाड़ के इस धार्मिक स्थान तक पहुंचने के लिए श्रद्धालु गुलाबगढ़ से करीब 30 किमी पैदल चढ़ाई करते हैं. इस मंदिर में जाने के लिए हेलिकॉप्टर सर्विस भी है, जिसे खराब मौसम के कारण इन दिनों कैंसल किया गया था.
क्या है मंदिर का इतिहास
मंदिर का इतिहास ज़ोरावर सिंह कहलूरिया की विजयों से जुड़ा है. उन्होंने साल 1834 में लद्दाख के स्थानीय बोटिस की सेना को हराने के लिए 5000 सैनिकों के साथ पहाड़ों और सुरू नदी (सिंधु) को पार करने से पहले मचैल माता का आशीर्वाद लिया था.
सफल अभियान के बाद वे उनके भक्त बन गए. मचैल माता मंदिर पहाड़ियों, ग्लेशियरों और चिनाब नदी (चद्रभागा) की सहायक नदियों के साथ बेदाग सुंदरता को भी दर्शाता है. यह क्षेत्र भोट समुदाय और ठाकुर समुदाय का निवास स्थान है, जो नाग पूजक हैं और महाराजा रणबीर सिंह द्वारा इसे किश्तवाड़ तहसील में मिला दिया गया था.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)