वाहे गुरुजी हमें ताकत और प्रेरणा देते हैं, सिंधू बॉर्डर पर जुटे बुजुर्ग किसान बोले

कृषि कानूनों के विरोध में सिंधू बॉर्डर पर जुटे हजारों किसानों का कहना है कि वाहे गुरुजी उन्‍हें ताकत और प्रेरणा दे रहे हैं, जिसकी बदौलत वे ठंड में भी दिल्‍ली की सीमा पर डटे हुए हैं.

कृषि कानूनों के विरोध में सिंधू बॉर्डर पर जुटे हजारों किसानों का कहना है कि वाहे गुरुजी उन्‍हें ताकत और प्रेरणा दे रहे हैं, जिसकी बदौलत वे ठंड में भी दिल्‍ली की सीमा पर डटे हुए हैं.

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Sunil Mishra
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किसान बोले- वाहे गुरुजी हमें ताकत और प्रेरणा देते हैं( Photo Credit : File Photo)

कृषि कानूनों के विरोध में सिंधू बॉर्डर पर जुटे हजारों किसानों का कहना है कि वाहे गुरुजी उन्‍हें ताकत और प्रेरणा दे रहे हैं, जिसकी बदौलत वे ठंड में भी दिल्‍ली की सीमा पर डटे हुए हैं. बता दें कि दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर पिछले 10 दिनों से किसान कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं. राष्ट्रीय राजधानी और इसके आसपास के इलाकों में शीतलहर शुरू होने लगी है. ठंड में भी किसानों का हौसला बरकरार है और वह इसका श्रेय वाहे गुरुजी को दे रहे हैं. 

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26 नवंबर को राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर पहुंचने के बाद से कुल छह किसानों की मौत हो चुकी है. फिर भी किसान डटे हुए हैं. हर दिन बीतने के साथ किसानों का विरोध मजबूत होता जा रहा है. किसानों को उम्मीद है कि केंद्र सरकार 'काले कानूनों' को वापस ले लेगी.

विभिन्न किसान यूनियनों से जुड़े विभिन्न आयु वर्गों में सैकड़ों-हजारों लोग इस आंदोलन में शामिल हैं, जिसका नेतृत्व सबसे वरिष्ठ सदस्य कर रहे हैं. किसान अमरिंदर पाल ढिल्लों (60) ने कहा, "हमारा उद्देश्य और वाहे गुरु जी महाराज हमें प्रेरित कर रहे हैं और इसलिए हम भले-चंगे (बेहतर स्वास्थ्य) भी हैं." वाहेगुरु एक शब्द है, जिसका इस्तेमाल सिख धर्म में भगवान को संदर्भित करने के लिए किया जाता है. इसे एक गुरुमंत्र के रूप में भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है उस परमात्मा का शब्द, जो अंधकार से बाहर ले आता है.

किसानों का कहना है कि वे भोजन, पानी आदि की पर्याप्त मात्रा सहित सभी जरूरी चीजें लेकर आए हैं. हरियाणा के सिरसा के 52 वर्षीय एक अन्य किसान राजबीर सिंह ने बताया, हम महीनों तक के लिए सभी जरूरी चीजें लेकर आए हैं और हम हमारी मांगों को पूरा होने तक विरोध प्रदर्शन करते रहेंगे."

उन्होंने कहा, हमें ठंड की परवाह नहीं है, हम यहां तब तक रहेंगे, जब तक सरकार इन कानूनों को वापस नहीं लेती, यहां से वापस नहीं जाना है. ठंड से बचाव के लिए किसान अपने अस्थायी टेंट के पास अलाव जलाते हैं. वे रजाई और कंबल से भी सुसज्जित हैं.

पिछले 10 दिनों से सैकड़ों मील की यात्रा करने के बाद उन्हें पुलिस और जलवायु दोनों बिंदुओं पर कड़ी मेहनत का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि किसानों का मानना है कि नए कृषि कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली (एमएसपी) को खत्म करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे, जिससे वे बड़े कॉर्पोरेट्स के भरोसे रह जाएंगे.

Source : News Nation Bureau

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