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Vijaya Ekadashi 2020: क्या है विजया एकादशी का महत्व, इस मुहूर्त पर करें पूजा

विजया एकादशी व्रत का संबंध भगवान विष्णु से होता है. ऐसा कहा जाता है कि यह व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं

Updated on: 19 Feb 2020, 11:31 AM

नई दिल्ली:

हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है. आज यानी 19 फरवरी को विजया एकादशी है जो शिवरात्रि से दो दिन पहले पड़ती है. ये एकादशी हर साल फागुन मास के कृष्‍ण पक्ष की एकादशी को पड़ती है. हर साल 24 एकादशियां होती हैं. जब अधिकमास या मलमास आता है, तब उनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है. हर महीने की 11 तारीख को एकादशी का व्रत करते हैं और हर महीने में दो एकादशी होती तिथि होती है. एक शुक्ल पक्ष का और दूसरा कृष्ण पक्ष का.

विजया एकादशी व्रत का संबंध भगवान विष्णु से होता है. ऐसा कहा जाता है कि यह व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. पुराणों मे कहा गया है कि भगवान विष्णु अपने भक्तों को उनकी इच्छानुसार वरदान देने के लिए एकादशी तिथि को पवित्र मानते हैं. कोई भी भक्त अगर विधि-विधान से एकादशी का व्रत करे तो सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं.

विजया एकादशी का शुभ मुहूर्त

विजया एकादशी आरंभ- 18 फरवरी, दोपहर 2. 32 बजे
विजया एकादशी समाप्त- 19 फरवरी दोपहर 3.02 बजे

व्रत रखने की विधि

एकादशी व्रत करने की इच्छा रखने वाले मनुष्य को दशमी के दिन से कुछ अनिवार्य नियमों का पालन करना पड़ेगा। इस दिन मांस, प्याज, मसूर की दाल आदि निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और भोग-विलास से दूर रहना चाहिए।

क्या नहीं करना चाहिए

एकादशी के दिन प्रात: लकड़ी का दातुन न करें। नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और उंगली से कंठ साफ कर लें। वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है। खुद गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें। यदि यह संभव न हो तो पानी से 12 बार कुल्ला कर लें। फिर स्नानादि कर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहितजी से गीता पाठ का श्रवण करें। प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि 'आज मैं चोर, पाखंडी और दुराचारी मनुष्यों से बात नहीं करूंगा और न ही किसी का दिल दुखाऊंगा। रात्रि को जागरण कर कीर्तन करूंगा।'

इस मंत्र का करें जाप

'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' इस द्वादश मंत्र का जाप करें। राम, कृष्ण, नारायण आदि विष्णु के सहस्रनाम को कंठ का भूषण बनाएं। भगवान विष्णु का स्मरण कर प्रार्थना करें कि- हे त्रिलोकीनाथ! मेरी लाज आपके हाथ है, अत: मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करना।