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Vat Savitri Vrat( Photo Credit : File)
हमारे लोकाचार में कई ऐसे पर्व और त्यौहार है जो हमें जीने की सिख देती है. प्रकृति की पूजा भारत के संस्कृति के केंद्र में है. देश के अमूनन सभी हिस्से में अपने अपने लोक पर्व है जो हमें प्रकृति के नजदीक लेकर जाती है, हमें प्रकृति से स्नेह और प्रेम करना सिखाती है. इस धरती पर जीवन तभी तक संभव है जब तक धरती पर हरे भरे पेड़ पौधे हैं. इस कोरोना काल सबसे अधिक मौत आक्सीजन की कमी से हुई है. जीवन के लिए सबसे महत्वपुर्ण है हवा. बिना हवा के हम एक पल भी जीवित नहीं रह सकते. ऐसे ही एक लोकपर्व है वट सावित्री की व्रत जो हमें प्रकृति से प्रेम करना सिखाती है. बरगद, पीपल और नीम के पेड़ अधिक मात्रा में आक्सीजन देते हैं. वट वृक्ष का संबंध सावित्री व्रत से भी है. इसलिए भी वट वृक्ष का महत्व ज्यादा है. दस जून को वट सवित्री व्रत है. इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और पति की मंगल कामना के लिए प्रार्थना करती हैं.
जानिए कैसे होता है वट सावित्री की व्रत
इस दिन सुहागिनें बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. वट सावित्री व्रत सौभाग्य प्राप्ति के लिए एक बड़ा व्रत माना जाता है. हिदू शास्त्रों के अनुसार, वटवृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास माना गया है. वट वृक्ष यानि बरगद का पेड़ देव वृक्ष माना जाता है. देवी सावित्री भी इस वृक्ष में निवास करती हैं. मान्यताओं के अनुसार ये व्रत वट सावित्री के नाम से जाना जाता है. इस दिन वृक्ष की परिक्रमा करते समय 108 बार कच्चा सूत लपेटा जाता है. महिलाएं सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं.
सावित्री की कथा सुनने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. हम संकल्प लेते हैं कि पीपल, बरगद, आंवला, बेल पत्र और कदम का पेड़ बहुत ही महत्व रखता है. कदम का पेड़ भगवान कृष्ण द्वारा प्रकट किया गया है, जो आज वृंदावन में है. एक पौधे की देखभाल करना संतान का लालन-पालन करने के बराबर है, ऐसा शास्त्र कहते हैं.
इस दिन वृक्षों की पूजा होती है जो हमें जीवन देती है. अगर वृक्ष है, तो जीवन है.
Source : News Nation Bureau