Vasudev Dwadashi 2022 Tithi: हिंदू धर्म में भगवान कृष्ण से संबंधित व्रत एवं त्योहार का विशेष महत्व होता है. इन्हीं व्रतों में से एक व्रत है वासुदेव द्वादशी व्रत. वासुदेव द्वादशी का व्रत भगवान कृष्ण को समर्पित है. हिंदी पंचांग के अनुसार, यह व्रत हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को रखा जाता है. वासुदेव द्वादशी का व्रत देव शयनी एकादशी के 1 दिन पश्चात मनाया जाता है. आषाढ़ मास और चातुर्मास के आरंभ में वासुदेव द्वादशी का व्रत किया जाता है. वासुदेव द्वादशी के दिन भगवान श्री कृष्ण के साथ भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है. जो भी मनुष्य वासुदेव द्वादशी का व्रत करता है उसे मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है. वासुदेव द्वादशी के दिन भगवान वासुदेव के अलग-अलग नाम और उनके व्यूहों के साथ साथ पैर से लेकर सिर तक सभी अंगों की पूजा की जाती है.
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वासुदेव द्वादशी व्रत 2022 तिथि (Vasudev Dwadashi 2022 Tithi)
हिंदी पंचांग के मुताबिक, वासुदेव द्वादशी व्रत चातुर्मास के दिन रखा जाता है. इस बार यह व्रत 10 जुलाई दिन रविवार को रखा जाएगा. कृष्ण भक्त इस दिन व्रत रखते हुए उनकी पूजा करेंगे तथा अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु प्रार्थना करेंगे.
वासुदेव द्वादशी भगवान श्रीकृष्ण का त्योहार है. भगवान श्री कृष्ण मूल रूप से मथुरा में वासुदेव और देवकी के आठवें बच्चे के रूप में पैदा हुए थे. श्री कृष्ण के रूप में अवतार श्री महा विष्णु द्वारा कंसाससुर और अन्य राक्षसों को नष्ट करने के लिए नियुक्त किया गया था. लेकिन असुरों का शमन बाद के समय के लिए था. इसलिए श्रीकृष्ण को मथुरा से गोकुलम स्थानांतरित करने की व्यवस्था की गई.
देवशयनी एकादशी के अगले दिन वासुदेव द्वादशी होती है. यह आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वादशी को पड़ती है. वासुदेव द्वादशी भी चतुर्मास की शुरुआत का प्रतीक है, चार महीने के समूह में बहुत सारे व्रत और कार्य होते हैं. यह दिन श्री महालक्ष्मी की पूजा के लिए भी समर्पित है. इस पर्व को श्रीकृष्ण द्वादशी भी कहा जाता है.
वराह पुराण के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि ऋषि नारद ने वसुदेव और देवकी को आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वादशी पर श्री विष्णु को अपने पुत्र के रूप में प्राप्त करने के लिए व्रत का पालन करने के लिए कहा था. इसलिए यह व्रत श्रीकृष्ण के अवतार में महत्वपूर्ण है.