Varuthini Ekadashi 2024: एकादशी के दिन करते हैं चावल का सेवन? तो भूल से भी न करें ये काम!

Varuthini Ekadashi 2024: क्या आप जानते हैं कि आखिर एकादशी व्रत में चावल खाना क्यों वर्जित है? अगर नहीं, तो आइए इस लेख में हम आपको बताते हैं कि इस व्रत में चावल क्यों नहीं खाया जाता है.

Varuthini Ekadashi 2024: क्या आप जानते हैं कि आखिर एकादशी व्रत में चावल खाना क्यों वर्जित है? अगर नहीं, तो आइए इस लेख में हम आपको बताते हैं कि इस व्रत में चावल क्यों नहीं खाया जाता है.

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Sushma Pandey
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Varuthini Ekadashi 2024

Varuthini Ekadashi 2024( Photo Credit : news nation)

Varuthini Ekadashi 2024: वरुथिनी एकादशी वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है. यह हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है. हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार वरुथिनी एकादशी 4 मई को मनाई जाएगी. इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है कि वरुथिनी एकादशी का व्रत रखने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है. इस व्रत को रखने से ग्रहों की शांति भी होती है और कष्टों से मुक्ति मिलती है. इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा करने से धन-वैभव की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु की पूजा करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है.

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वहीं ज्योतिष में एकादशी से जुड़े कई नियमों के बारे में बताया गया है जिसका पालन हमें अवश्य करना चाहिए. इन्हीं नियमों से एक चावल को लेकर  है. इस दिन चावल खाने की मनाही होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर एकादशी व्रत में चावल खाना क्यों वर्जित है? अगर नहीं, तो आइए इस लेख में हम आपको बताते हैं कि इस व्रत में चावल क्यों नहीं खाया जाता है. 

एकादशी को चावल क्यों वर्जित है?

धार्मकि मान्यताओं के अनुसार, एकादशी व्रत के दिन चावल गलती से भी नहीं खाना चाहिए. शास्त्रों में इस दिन चावल का सेवन करना वर्जित माना जाता है. माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस दिन इसका सेवन करता है तो उसे पुण्य फल की प्राप्ति नहीं होती है. एकादशी के दिन चावल का सेवन इसलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि इसे हविष्य अन्न यानी कि देवताओं का भोजन माना   जाता है. एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. इसलिए इस दिन चावल का सेवन न करके हम भगवान विष्णु को भोग लगाते हैं. इसलिए देवी-देवताओं के सम्मान में इस दिन चावल का सेवन करना वर्जित माना जाता है. 

एक पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि मेधा ने देवी मां के प्रकोप से भागते समय अपना शरीर त्याग दिया था.  इसके बाद उनके शरीर के अंग धरती में समा गए. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महर्षि मेधा के शरीर के अंग धरती में समाहित हो गए और बाद में महर्षि मेधा ने उसी स्थान पर चावल और जौ के रूप में जन्म लिया. इसलिए चावल को एक पौधा नहीं बल्कि जीवन का एक रूप माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन महर्षि मेधा धरती में समाए थे उस दिन एकादशी तिथि थी और तभी से एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित माना गया है. 

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

Source : News Nation Bureau

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