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Valmiki Jayanti 2022: जब शरीर पर लगी दीमाग से जागृत हुई रामायण ने किया लव-कुश का संरक्षण, महर्षि वाल्मिकी के इस सत्य से आज भी अनभिग्य हैं आप

Valmiki Jayanti 2022: महर्षि वाल्मिकी ने रामायण जैसे महाकाव्य की रचना की थी. इसी कारण से महर्षि वाल्मिकी के जन्मोत्सव को बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है.

Updated on: 08 Oct 2022, 04:36 PM

नई दिल्ली :

Valmiki Jayanti 2022: अश्विन माह की पूर्णिमा तिथि पर हर साल वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है. इस दिन रामायण के रचियता महर्षि वाल्मीकि का जन्म हुआ था. इस साल वाल्मीकि जयंती 9 अक्टूबर 2022, दिन रविवार को पड़ रही है. वाल्मीकि ऋषि को आदिकवि भी कहा जाता है. महर्षि वाल्मिकी ने रामायण जैसे महाकाव्य की रचना की थी. इसी कारण से महर्षि वाल्मिकी के जन्मोत्सव को बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है. देशभर की कई जगहों पर धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, झांकियां निकाली जाती हैं और मंदिरों में वाल्मीकि जी की पूजा भी की जाती है. वाल्मिकी जयंती इसलिए भी खास है क्योंकि इस दिन आश्विन पूर्णिमा या शरद पूर्णिमा की शुभ तिथि भी पड़ने जा रही है. ऐसे में चलिए जानते हैं वाल्मीकि जी के नाम और उनके महर्षि बनने की कथा के बारे में. 

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वाल्मिकी जयंती 2022 तिथि (Valmiki Jayanti 2022 Tithi)
हिंदू कैलेंडर के अनुसार आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि के दिन वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है. इस बार पूर्णिमा तिथि 9 अक्टूबर को सुबह 3 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगी और 10 अक्टूबर को सुबह 2 बजकर 24 मिनट पर समाप्त होगी. उदयातिथि के अनुसार वाल्मीकि जयंती 9 अक्टूबर को मनाई जाएगी.

वाल्मिकी जयंती 2022 नाम का रहस्य (Valmiki Jayanti 2022 Valmiki Name Rahasya) 
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार महर्षि वाल्मीकि तपस्या में बैठे थे.कई दिनों तक चले इस तप में वो इतने मग्न थे उनके पूरे शरीर पर दीमक लग गई. महर्षि ने अपनी साधना पूरी करने के बाद ही आंखें खोली. फिर दीमकों को हटाया. दीमक जिस जगह अपना घर बना लेती है उसे वाल्मीकि कहते हैं, इसलिए इन्हें वाल्मीकि के नाम से जाना जाने लगा.

वाल्मिकी जयंती 2022 पौराणिक कथा (Valmiki Jayanti 2022 Katha) 
महर्षि वाल्मीकि के जन्म को लेकर कई मत हैं जिसके अनुसार, यह महर्षि कश्यप के 9वें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी की संतान थे. ऋषि भृगु इनके बड़े भ्राता माने जाते हैं. ब्राह्मण कुल में जन्में वाल्मीकि जी युवावस्था में डकैत बन गए थे. कहते हैं कि जन्म के बाद इन्हें भील समुदाय के लोग चुराकर ले गए थे. इनकी परवरिश वहीं हुई. 

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वाल्मीकि से पहले इन्हें रत्नाकर नाम से बुलाया जाता था. रत्नाकर लूट-पाट, चोरी जैसे गलत काम करता था लेकिन एक घटना ने उनका जीवन पूरी तरह बदलकर रख दिया. एक बार जब रत्नाकर डाकू ने जंगल में नारद मुनि को बंदी बना लिया. नारद जी बोले इन गलत कामों से तुम्हें क्या मिलेगा. रत्नाकर बोला यह मैं परिवार के लिए करता हूं. नारद जी ने उसे कहा कि जिसके लिए तुम गलत मार्ग पर चल रहे हो उनसे पूछो की क्या वह तुम्हारे पाप कर्म का फल भोगेंगे. 

नारद जी के कहे अनुसार रत्नाकर ने ऐसा ही किया लेकिन परिवार के सभी सदस्यों ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. इस घटना से रत्नाकर बहुत दुखी हुआ और गलत मार्ग का त्याग करते हुए राम की भक्ति में डूब गया. तपस्या आरंभ करते समय जो व्यक्ति डाकू रत्नाकर हुआ करता था वह तपस्या का समापन होते होते महर्षि वाल्मिकी में परिवर्तित हो गए. इसके बाद ही उन्हें रामायण महाकाव्य की रचना करने की प्रेरणा मिली.

वाल्मीकि जी को एक लेकर एक प्रचलित कहानी ये भी है ​कि जब भगवान राम ने माता सीता का त्याग किया था तो माता सीता ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही निवास किया था. इसी आश्रम में ही उन्होंने लव-कुश को जन्म दिया था. इसलिए लोगों के बीच वाल्मीकि जयंती का विशेष महत्व है.