बाबा महाकाल की नगरी में अनोखा सूर्य मंदिर, यहां प्रेत बाधा से मिलती है मुक्ति
वैसे तो बाबा महाकाल की नगरी में आते ही भक्तों को सुख की अनुभूति होने लगती है.उनका जीवन रौशन होने लगता है, लेकिन उन्ही की नगरी में एक मंदिर ऐसा भी है.
नई दिल्ली:
वैसे तो बाबा महाकाल की नगरी में आते ही भक्तों को सुख की अनुभूति होने लगती है.उनका जीवन रौशन होने लगता है, लेकिन उन्ही की नगरी में एक मंदिर ऐसा भी है. जिसमें विराजमान है सबके अंधियारे को दूर करने वाले देवता.वो देवता जो भक्तों को साक्षात दर्शन देकर उनके घरों को रौशन कर देते हैं.उज्जैन का सूर्य मंदिर देशभर में अनुखी कला के लिए जाना जाता है. उज्जैन के भैरवगढ़ से 5 किलोमीटर दूर कालियादेह महल में सूर्य देव विराजमान है.मान्यता है कि सूर्य देव को कालप्रियदेव भी कहा जाता है, जिसकी वजह से इस सूर्य महल को कालियादेह कहा जाता है.मान्यता है कि ये सूर्यदेव का प्राचीन स्थान था और यहां प्रेत बाधा से मुक्ति प्राप्त करने के लिए पूजा पाठ भी किया जाता है.
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इस प्राचीन सूर्य मंदिर को प्रेतपीड़ा, मुक्तिदाता, बावन कुण्ड, कालियादेह महल के नाम से भी जाना जाता है.मान्यता है कि इस भवन को पत्थर की एक बांध से पश्चिम की ओर जोड़ा गया है.साथ ही ये भी कहा जाता है कि मालवा का खिलजी सुल्तान नासिर शाह ने यहा एक भवन निर्माण करवाया था..ताकि वो भवन शीतलता प्रदान कर सके.भवन वास्तुकला के माण्डु शैली का एक नमुना है. कहा जाता है कि नसिरउद्दीन ख़िलजी ने इसे जल महल का रूप देने की कोशिश की थी और इस रमणीय स्थान पर शेरशाह सूरी,अकबर, जहांगीर भी पधारे थे.और कहा जाता है कि प्राचीन काल में इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया था..लेकिन मराठाकाल में इस क्षेत्र का पुनरुद्धार हुआ. विजयाराजे सिंधिया ने यहां पुनः सूर्य प्रतिमा की प्रतिष्ठा की.और तब से इस सूर्य मंदिर की मान्यता और भी बढ़ गई है.
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कालिदह सूर्य मंदिर की खासियत है कि यहां सूर्य मंदिर के साथ सूर्य कुंड भी है और मान्यता है कि उस कुंड के जल में खड़े होने से ही सूर्य भगवान की कृपा होने लगती है.मान्यता है कि उज्जैन में पड़ने वाली पहली सूर्य की किरण यहां सूर्य भगवान की प्रतिमा पर पड़ती है.और उसके बाद ही उज्जैन में प्रवेश करती है.यहां सूर्य भगवान की प्रतिमा पूर्वीमुखी है और मान्यता है कि इनके दर्शन मात्र से लोगों के जीवन में उजियारा छा जाता है.
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