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मातृ ऋण के प्रभाव से मुक्‍त होने के लिए आज मातृ नवमी को किया जाता है श्राद्ध, जानें विधि-विधान

आज मातृ नवमी है. पितृ पक्ष में पड़ने वाली नवमी तिथि को मातृ नवमी कहा जाता है. मातृ नवमी को घर की उन महिलाओं की पूजा की जाती है, जिनका निधन हो चुका है.

Updated on: 11 Sep 2020, 03:47 PM

नई दिल्ली:

आज मातृ नवमी (Matri Navami) है. पितृ पक्ष (Pitru Paksha) में पड़ने वाली नवमी तिथि को मातृ नवमी कहा जाता है. मातृ नवमी को घर की उन महिलाओं की पूजा की जाती है, जिनका निधन हो चुका है. हिंदू धर्म (Hindu Religion) की रीति-रिवाज के अनुसार, गुजर चुकीं माताओं का आशीर्वाद पाने के लिए इस दिन श्राद्ध किया जाता है और मातृ ऋण से भी मुक्ति पाई जा सकती है. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन श्राद्ध करने से व्यक्ति की मनोकानाएं पूरी होती हैं. इस तिथि को सौभाग्यवती नवमी भी कहा जाता है.

मातृ ऋण को सबसे बड़ा ऋण माना जाता है. राहु का संबंध कुंडली में चतुर्थ भाव चन्द्रमा या शुक्र से हो तो समझ लें कि मातृ ऋण है. हाथों का कठोर होना और हथेलियों का काला होना भी मातृ ऋण का संकेत है. चतुर्थ भाव, चन्द्रमा और शुक्र ये तीनों माता और उसके संबंध के बारे में संकेतक का काम करते हैं. मातृऋण से उऋण न होने पर कई तरह की समस्‍याएं पैदा होती हैं. मातृनवमी पर सरलता के साथ मातृऋण से उऋण हुआ जा सकता है.

मातृ ऋण का प्रभाव होने से व्यक्ति को भय और तनाव में रहने की आदत सी हो जाती है. ऐसे लोग अकसर अवसाद में चले जाते हैं और युवावस्था से ही जीवन में उतार-चढ़ाव शुरू हो जाता है.

मातृ ऋण के प्रभाव से मुक्‍त होने के लिए मातृ नवमी के दिन श्राद्ध करें. शृंगार की सामग्री जैसे लाल रंग की साड़ी, सिन्दूर, बिंदी और चूड़ियां रखें. सम्पूर्ण भोजन बनाएं. उरद की बनी हुई वस्तुएं जरूर रखें. किसी सौभाग्यवती स्त्री को सम्मान सहित घर बुलाएं, उसे भोजन कराएं. उन्हें सम्पूर्ण शृंगार की सामग्री भेंट कर आशीर्वाद प्राप्‍त करें.