logo-image

भगवान बृहस्पति की पूजा से दूर होंगे सारे दुख, यहां जानें पूजा-विधि, कथा और आरती

सप्ताह का हर दिन कोई न कोई भगवान को समर्पित हैं और उस दिन उनकी पूजा-पाठ करने से लोगों को विशेष लाभ मिलता हैं. ऐसे ही गुरुवार का दिन भगवान बृहस्पति का होता है और इस दिन उनकी पूजा का विधान है.

Updated on: 07 Oct 2020, 12:55 PM

नई दिल्ली:

सप्ताह का हर दिन कोई न कोई भगवान को समर्पित हैं और उस दिन उनकी पूजा-पाठ करने से लोगों को विशेष लाभ मिलता हैं. ऐसे ही गुरुवार का दिन भगवान बृहस्पति का होता है और इस दिन उनकी पूजा का विधान है. वहीं इस दिन मां लक्ष्मी और और विष्णु भगवान की साथ में पूजा करने से परिवार में सुख समृद्धि आती है. जिनके विवाह में देरी हो रही है, उनके लिए भी गुरुवार का व्रत बेहद शुभ माना गया है. ऐसा कहा जाता है कि अगर आप 1 साल में गुरुवार का व्रत करते हैं तो आपके घर में कभी भी पैसे रुपयों की कमी नही होती और आपका पर्स कभी खली नही होता.

और पढ़ें:  Shardiya navratri 2020: मां दुर्गा इस नवरात्रि पर किस वाहन से आएंगी, जानें यहां

पूजा विधि

गुरुवार की पूजा विधि-विधान के साथ की जानी चाहिए. व्रत के दिन सुबह जल्दी उठ कर स्नान कर वृहस्पति देश की पूजा करनी चाहिए. इस दौरान पीले वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है. पूजा में पीली (Yellow) वस्तुएं, जैसे पीले फूल, चने की दाल, मुनक्का, पीली मिठाई, पीले चावल और हल्दी चढ़ाई जाती है.

इस व्रत में केले के पेड़ की पूजा भी की जाती है. जल में हल्दी डालकर केले के पेड़ पर चढ़ाया जाता है. इसके बाद चने की दाल और मुनक्का पेड़ की जड़ों में डालकर दिया जलाया जाता है औऱ पेड़ की आरती उतारी जाती है. पूजा के बाज बृहस्पति देव की कथा भी सुननी चाहिए. इस दिन दान-पुण्य का भी काफी महत्व होता है.

गुरुवार के दिन इन कामों को करने से बचें-

1. शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस दिन महिलाओं को अपने बाल नहीं धोने चाहिए, क्योंकि महिलाओं की जन्मकुंडली में बृहस्पति पति का कारक होता हौ. साथ ही संतान का भी कारक होता है. इस दिन बाल धोने से बृहस्पति ग्रह कमजोर होता है, जिससे शुभ काम होने में अड़चन और हमेशा बीमारी बनी रहती है. इस दिन बाल भी नहीं कटवाना चाहिए क्योंकि असर संतान और पति के जीवन पर पड़ता है और उनकी उन्नति बाधित होती है.

2. कपड़े धोना, पोंछा लगाना, कबाड़ बाहर निकलना आदि आपके बृहस्पति ग्रह पर अधिक प्रभाव डालता है. वास्तु के अनुसार माना जाता है कि हमारे घर की दिशा ईशान कोण जिसका गुरु बृहस्पति ग्रह होता है. साथ ही इस दिशा का संबंध परिवार के बच्चों, शिक्षा और धर्म का होता है।इसलिए ये काम नहीं करना चाहिए।नहीं तो आपकी संतान, शिक्षा और धर्म में अशुभ प्रभाव पड़ता है.

बृहस्पतिदेव की कथा

प्राचीनकाल में एक बहुत ही निर्धन ब्राहमण था. उसके को‌ई संन्तान न थी. वह नित्य पूजा-पाठ करता, परंतु उसकी स्त्री न स्नान करती और न किसी देवता का पूजन करती. इस कारण ब्राहमण देवता बहुत दुखी रहते थे अपनी पत्नी को बहुत समझाते किंतु उसका कोई परिणाम न निकलता. भगवान की कृपा से ब्राहमण के यहां एक कन्या उत्पन्न हु‌ई. कन्या बड़ी होने लगी. प्रातः स्नान करके वह भगवान विष्णु का जाप करती. वृहस्पतिवार का व्रत भी करने लगी. पूजा पाठ समाप्त कर पाठशाला जाती तो अपनी मुट्ठी में जौ भरके ले जाती और पाठशाला के मार्ग में डालती जाती. लौटते समय वही जौ स्वर्ण के हो जाते तो उनको बीनकर घर ले आती. एक दिन वह बालिका सूप में उन सोने के जौ को फटककर साफ कर रही थी कि तभी उसकी मां ने देख लिया और कहा कि हे बेटी सोने के जौ को फटकने के लिये सोने का सूप भी तो होना चाहिये.

दूसरे दिन गुरुवार था. कन्या ने व्रत रखा और वृहस्पतिदेव से सोने का सूप देने की प्रार्थना की और कहा कि हे प्रभु यदि सच्चे मन से मैंने आपकी पूजा की हो तो मुझे सोने का सूप दे दो. वृहस्पतिदेव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली. रोजाना की तरह वह कन्या जौ फैलाती हु‌ई पाठशाला चली ग‌ई. पाठशाला से लौटकर जब वह जौ बीन रही थी तो वृहस्पतिदेव की कृपा से उसे सोने का सूप मिला. उसे वह घर ले आ‌ई और उससे जौ साफ करने लगी. परन्तु उसकी मां का वही ढंग रहा.

एक दिन की बात है. कन्य सोने के सूप में जब जौ साफ कर रही थी, उस समय उस नगर का राजकुमार वहां से निकला. कन्या के रुप और कार्य को देखकर वह उस पर मोहित हो गया. राजमहल आकर वह भोजन तथा जल त्यागकर उदास होकर लेट गया.

राजा को जब राजकुमार द्घारा अन्न-जल त्यागने का समाचार ज्ञात हु‌आ तो अपने मंत्रियों के साथ वह अपने पुत्र के पास गया और पूछा हे बेटा! तुम्हें किस बात का कष्ट है किसी ने तुम्हारा अपमान किया है अथवा कोई और कारण है मुझे बताओ मैं वही कार्य करूंगा जिससे तुम्हें प्रसन्नता हो. अपनी पिता की बातें सुनकर राजकुमार बोला हे पिताजी! मुझे किसी बात का दुख नहीं है किसी ने मेरा अपमान नहीं किया है परंतु मैं उस लड़की के साथ विवाह करना चाहता हूं जो सोने के सूप में जौ साफ कर रही थी. राजकुमार ने राजा को उस लड़की के घर का पता भी बता दिया. मंत्री उस लड़की के घर गया. मंत्री ने ब्राहमण के समक्ष राजा की ओर से निवेदन किया. कुछ ही दिन बाद ब्राहमण की कन्या का विवाह राजकुमार के साथ सम्पन्न हो गाया.

‌कन्या के घर से जाते ही ब्राहमण के घर में पहले की भांति गरीबी का निवास हो गया. एक दिन दुखी होकर ब्राहमण अपनी पुत्री से मिलने गये. बेटी ने पिता की अवस्था को देखा और अपनी माँ का हाल पूछा ब्राहमण ने सभी हाल कह सुनाया. कन्या ने बहुत-सा धन देकर अपने पिता को विदा कर दिया. लेकिन कुछ दिन बाद फिर वही हाल हो गया. ब्राहमण फिर अपनी कन्या के यहां गया और सभी हाल कहा तो पुत्री बोली, हे पिताजी, आप माताजी को यहाँ लिवा लाओ. मैं उन्हें वह विधि बता दूंगी, जिससे गरीबी दूर हो जाए.

ब्राहमण देवता अपनी स्त्री को साथ लेकर अपनी पुत्री के पास राजमहल पहुंचे तो पुत्री अपनी मां को समझाने लगी, हे मां, तुम प्रातःकाल स्नानादि करके विष्णु भगवन का पूजन करो और बृहस्पतिवार का व्रत करो तो सब दरिद्रता दूर हो जाएगी. परन्तु उसकी मां ने उसकी एक भी बात नहीं मानी. वह प्रातःकाल उठकर अपनी पुत्री के बच्चों का झूठन खा लेती थी. एक दिन उसकी पुत्री को बहुत गुस्सा आया, उसने अपनी माँ को एक कोठरी में बंद कर दिया. प्रातः उसे स्नानादि कराके पूजा-पाठ करवाया तो उसकी मां की बुद्घि ठीक हो ग‌ई. इसके बाद वह नियम से पूजा पाठ करने लगी और प्रत्येक वृहस्पतिवार को व्रत करने लगी. इस व्रत के प्रभाव से मृत्यु के बाद वह स्वर्ग को ग‌ई. वह ब्राहमण भी सुखपूर्वक इस लोक का सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त हु‌आ.

ये भी पढ़ें: Unlock 5: कोरोना काल में दुर्गा पूजा पंडाल तो सजेंगे पर इन गाइडलाइंस का रखना होगा ध्‍यान

भगवान बृहस्पति की आरती-

ॐ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन-छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

तुम पूर्ण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

जो कोई आरती तेरी प्रेम सहित गावे।
जेष्टानंद बंद सो-सो निश्चय पावे।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।