आचार्य चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु और सलाहकार थे. उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और नीतियों से ही नंद वंश को नष्ट कर मौर्य वंश की स्थापना की थी. आचार्य चाणक्य ही चंद्रगुप्त को अपनी नीतियों के बल पर एक साधारण बालक से शासक के रूप में स्थापित किया. आचार्य चाणक्य की अर्थनीति, कूटनीति और राजनीति विश्वविख्यात है. हर एक को प्रेरणा देने वाली है. अर्थशास्त्र के मर्मज्ञ होने के कारण इन्हें कौटिल्य कहा जाता था. आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र के जरिए जीवन से जुड़ी समस्याओं का समाधान बताया है.
आचार्य ने ऐसे कई रिश्तों से जुड़े सवालों का हल बताया है जिन्हें हम अक्सर खोजते हैं. चाणक्य ने बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए माता-पिता को भी कुछ सुझाव दिए हैं. हर माता-पिता का कर्तव्य होता है कि वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दें और उनका जीवन सुखमय बनाएं. परवरिश में थोड़ी-सी लापरवाही माता-पिता पर भारी पड़ सकती है और बच्चों का जीवन गलत दिशा में जा सकता है. आचार्य चाणक्य बच्चों के परवरिश के बारे में अपने ग्रन्थ चाणक्य नीति में लिखा है.
आचार्य चाणक्य कहते है :
पांच वर्ष लौं लालिये, दस लौं ताडन देइ।
सुतहीं सोलह वर्ष में, मित्र सरसि गनि लेइ।।
चाणक्य कहते हैं कि हर माता-पिता को अपने बच्चे को पांच साल तक प्यार-दुला करना चाहिए. जब संतान 10 साल की हो जाए और गलत आदतों का शिकार होने लगे तो उसे दंड भी देना चाहिए. ताकि बच्चे का भविष्य सुरक्षित हो सके. जब बच्चा 16 साल का हो जाए तो उसके साथ मित्र जैसा व्यवहार करना चाहिए.
चाणक्य कहते हैं कि पांच साल तक बच्चे के साथ माता-पिता को प्रेम और दुलार से पेश आना चाहिए. अक्सर प्यार-दुलार के कारण बच्चे गलत आदतों का शिकार होने लगते हैं. अगर वह प्रेम से माता-पिता की बात न समझें तो उन्हें दंड देकर सही रास्ता दिखाया जा सकता है. जब बच्चा 16 साल का हो जाए तो उसे पीटना नहीं चाहिए बल्कि मित्रों की तरह व्यवहार करना चाहिए. ताकि बच्चा आपको दिल की बात साझा कर सके. गुस्सा या पिटाई से बच्चा घर छोड़कर भी जा सकता है. ऐसे में बच्चा जब घर-संसार समझने लगे तो उसके साथ मित्र की भांति व्यवहार करना उत्तम रहता है.
Source : News Nation Bureau