Mahakumbh 2025: 'विश्वगुरु' बने स्वामी श्रील प्रभुपाद, अखाड़ा परिषद ने किया सम्मानित, निरंजनी अखाड़े में हुआ ऐतिहासिक आयोजन

Mahakumbh 2025: श्रील प्रभुपाद ने अपने जीवन को श्रीकृष्ण भक्ति और सनातन धर्म के प्रचार में समर्पित किया. उनकी शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों को आध्यात्मिक जीवन जीने की प्रेरणा दे रही हैं.

Mahakumbh 2025: श्रील प्रभुपाद ने अपने जीवन को श्रीकृष्ण भक्ति और सनातन धर्म के प्रचार में समर्पित किया. उनकी शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों को आध्यात्मिक जीवन जीने की प्रेरणा दे रही हैं.

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Inna Khosla
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Swami Srila Prabhupada became Vishwaguru

Swami Srila Prabhupada became Vishwaguru Photograph: (News Nation)

Mahakumbh 2025: महाकुंभ 2025 के पावन अवसर पर अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (ISKCON) के संस्थापक स्वामी श्रील प्रभुपाद को 'विश्व गुरु' की उपाधि से सम्मानित किया गया. ये भव्य पट्टाभिषेक निरंजनी अखाड़ा परिसर में वैदिक रीति-रिवाजों के साथ संपन्न हुआ. स्वामी श्रील प्रभुपाद ने कृष्ण भक्ति के संदेश को संपूर्ण विश्व में फैलाया और लाखों लोगों को सनातन संस्कृति से जोड़ा. उनके वैश्विक योगदान को देखते हुए अखाड़ा परिषद ने उन्हें 'विश्व गुरु' की उपाधि प्रदान करने का निर्णय लिया.

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संत समाज की उपस्थिति में हुआ भव्य आयोजन

इस ऐतिहासिक समारोह में अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी, निरंजनी अखाड़ा के संतों, ISKCON के अनुयायियों और अन्य धार्मिक नेताओं ने भाग लिया. वैदिक मंत्रोच्चार के बीच उनका पट्टाभिषेक किया गया और उन्हें सनातन धर्म का दूत बताया गया. अखाड़ा परिषद के संतों ने कहा कि स्वामी प्रभुपाद ने भारत की आध्यात्मिक धरोहर को वैश्विक पहचान दिलाई. उनके प्रयासों से आज दुनिया के कोने-कोने में गीता का संदेश गूंज रहा है. ये सम्मान समारोह सनातन परंपरा और वैश्विक भक्ति आंदोलन के लिए एक ऐतिहासिक क्षण बन गया.

स्वामी श्रील प्रभुपाद का जीवन परिचय

श्रील प्रभुपाद को सनातन धर्म के प्रचार और कृष्ण भक्ति आंदोलन को विश्व स्तर पर फैलाने के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 1 सितंबर 1896 को कोलकाता में एक वैष्णव परिवार में हुआ. जन्म नाम अभय चरण डे था. बाल्यकाल से ही वे धार्मिक प्रवृत्ति के थे और श्रीकृष्ण के प्रति गहरी भक्ति रखते थे. 1922 में, उनकी भेंट श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर से हुई, जो गौड़ीय वैष्णव परंपरा के प्रमुख आचार्य थे. उन्होंने प्रभुपाद को पश्चिमी देशों में कृष्ण भक्ति के प्रचार का निर्देश दिया. गुरु की आज्ञा को अपने जीवन का लक्ष्य मानकर, उन्होंने वैदिक ज्ञान और भक्ति योग का अध्ययन किया. 1959 में, प्रभुपाद ने संन्यास ग्रहण किया और भागवत धर्म के प्रचार में लग गए. उन्होंने वृंदावन में रहकर भागवत पुराण और भगवद गीता का अंग्रेजी अनुवाद किया, जिससे पश्चिमी देशों में सनातन धर्म की लोकप्रियता बढ़ी.

ISKCON की स्थापना और वैश्विक प्रभाव

1965 में, वे अकेले अमेरिका गए और वहां कृष्ण भक्ति आंदोलन की नींव रखी. उन्होंने 1966 में अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (ISKCON) की स्थापना की, जो आज 100 से अधिक देशों में कार्यरत है. उनके प्रयासों से हजारों लोगों ने हिंदू धर्म, वेदांत और भक्ति योग को अपनाया. उन्होंने कृष्ण भक्ति को एक वैश्विक आंदोलन में बदल दिया और पश्चिमी जगत में सनातन संस्कृति को स्थापित किया. श्रील प्रभुपाद का 14 नवंबर 1977 को वृंदावन में निधन हो गया, लेकिन उनकी शिक्षाएं आज भी करोड़ों भक्तों को प्रेरित कर रही हैं. 

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.) 

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