Swami Haridas Jayanti 2022: कौन थे स्वामी हरिदास और क्यों कहलाए श्री राधा कृष्ण के अति प्रिय भक्त ?
Swami Haridas Jayanti 2022: स्वामी हरिदास जी ने अपनी काव्य रचनाओं में राधा रानी और श्री कृष्ण के प्रेम को अंकित किया है. हरिदास जी की इन्हीं रचनाओं को स्मरण करते हुए हर साल स्वामी हरिदास जयंती मनाई जाती है.
नई दिल्ली :
Swami Haridas Jayanti 2022: स्वामी हरिदास जी को सर्वश्रेष्ठ विरक्त संगीतशास्त्र और श्री राधा कृष्ण के परम भक्त के रूप में जाना जाता है. स्वामी हरिदास जी ने अपनी काव्य रचनाओं में राधा रानी और श्री कृष्ण के प्रेम को अंकित किया है. हरिदास जी की इन्हीं रचनाओं को स्मरण करते हुए हर साल स्वामी हरिदास जयंती मनाई जाती है. इस साल हरिदास जयंती 4 सितंबर 2022, दिन रविवार को पड़ रही है. विशेष बात यह है कि हरिदास जयंती के दिन ही राधाष्टमी (Radha Ashtami 2022) महापर्व का शुभ संयोग बन रहा है. ऐसे में आइए जानते हैं श्री राधा कृष्ण के अति प्रिय भक्त की कुछ रोचक बातों के बारे में.
हिन्दू धर्म में कई संप्रदाय हैं जिनका आधार सूत्र वैष्णव भक्ति है. इन्हीं में से एक है निम्बार्क संप्रदाय. यह सबसे प्राचीनतम संप्रदायों में से एक है. इस संप्रदाय में प्रेम के सिद्धांतों को बहुत मान्यता प्राप्त है. अर्थात ईश्वर का प्रेम-दर्शन ही इस संप्रदाय का मूल आधार है. जिसके अनुसार, यह संप्रदाय प्रेम के स्वरूप श्री सर्वेश्वरी राधा और श्री सर्वेश्वर कृष्ण को अनन्य रूप से पूजती है.
वहीं, प्रेम के तीसरे स्वरूप को इस संप्रदाय में सखीजन कहते हैं. निम्बार्क संप्रदाय में सखी प्रेम को ही जीवन का सत्य समझा जाता है. सरल शब्दों में कहें तो, इस संप्रदाय में श्री राधा और श्री कृष्ण के साथ साथ राधा रानी की सखियाँ भी देवी तुल्य हैं जिनका पूजन आवश्यक है. इन्हीं सब लीलाओं को अपनी काव्य रचनाओं में स्वामी हरिदास जी ने पिरोया है.
इतिहासकारों के अनुसार, स्वामी हरिदास का जन्म 3 सितंबर, 1478 को हुआ था. उनका जन्म वृंदावन के राजपुर नाम के गांव में हुआ था. वे सनाढ्य जाति से थे और उनके पिता का नाम गंगाधर एवं माता का नाम चित्रादेवी था. माना जाता है कि स्वामी हरिदास भी अन्य की भांति ही ग्रहस्थी थे लेकिन एक दिन अचानक दीपक से पत्नी के जलकर मर जाने के व्योग में वे वृंदावन जाकर रहने लगे और उन्होंने विरक्त संस्यास धारण कर लिया.
ऐसा भी माना जाता है कि स्वामी हरिदास की उपासना से प्रसन्न होकर बांकेबिहारी की मूर्ति का प्राकट्य हो हुआ था जो आज भी वृंदावन में विराजमान है और पूजी जाती है. हरिदास महान संगीतज्ञ भी थे और तानसेन उनके ही परम शिष्य थे. इतिहास में दर्ज है कि हरिदास जी की मृत्यु 95 वर्ष की आयु में 1573 के आसपास हुई थी.
स्वामी हरिदास ने किसी दार्शनिक मतवाद का प्रतिपादन ही किया और वे रस मार्ग के पथिक थे. उन्होंने हरि को स्वतंत्र और जीव को भगवान के अधीन मानकर अपनी रचनाएं की. संसार सागर को पार करने के लिए हरिनाम की नौका एकमात्र आधार है, इसपर उन्होंने विस्तार से कविताएं लिखी हैं. स्वामी हरिदास ने अपनी रचनाओं में राधा-कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया जो हृदय को भाव विभोर कर देने वाली हैं.
इतिहासाकरों के मुताबिक, स्वामी हरिदास जब अपने आश्रम में संगीत का अभ्यास कर रहे थे तभी सम्राट अकबर ने उन्हें सुना था. इसके बाद तानसेन हरिदास जी के शिष्य थे तो अकबर ने उन्हें सुनने की इच्छा जताई लेकिन हरिदास जी ने मना कर दिया.
बताया जाता है कि अकबर ने स्वामी हरिदास जी को अपने दरबार में आकर गाने के लिए कहा था लेकिन हरिदास जी अपने आश्रम से बाहर नहीं जाते थे इसलिए उन्होंने मना किया था. स्वामी हरिदास जी का श्री राधा कृष्ण के प्रति ऐसा प्रेम और भक्ति देख मुगल शहंशाह अकबर भी हैरान रह गए थे और उनकी भक्ति के आगे नतमस्तक हो गए थे.
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