Shardiya Navratri 2022 Day 4 Maa Kushmanda Mantra, Stotra, Kavach: मां कूष्मांडा के इन मंत्रों का जाप, दूर कर देगा आपका हर विलाप
Shardiya Navratri 2022 Day 4 Maa Kushmanda Mantra, Stotra, Kavach: शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन मां कुष्मांडा को समर्पित है. मां कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी, आदिशक्ति और आदि स्वरूपा के नाम से भी जाना जाता है.
नई दिल्ली :
Shardiya Navratri 2022 Day 4 Maa Kushmanda Mantra, Stotra, Kavach: शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन मां कुष्मांडा को समर्पित है. मां कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी, आदिशक्ति और आदि स्वरूपा के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि माता ने अपनी मंद मुस्कान से इस सृष्टि की रचना की थी, इसीलिए उनका नाम आदि शक्ति पड़ा. हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, माता की भुजाओं में सिद्धियों से युक्त जप माला, धनुष, बाण, शंख, गदा, चक्र, कमंडल और अमृत कलश है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां कुष्मांडा ने ग्रह, तारे, सूर्य और सभी आकाश गंगाओं का निर्माण किया है. ऐसे में आइए जानते हैं मां कूष्मांडा के मंत्र, कवच और स्तोत्र के बारे में.
मां कूष्मांडा के मंत्र (Maa Kushmanda Mantra)
- बीज मंत्र
ऐं ह्री देव्यै नम:
ॐ देवी कुष्मांडायै नम:
- स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां कुष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
- प्रार्थना मंत्र
सूरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे।।
- ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।
कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
मां कूष्मांडा का स्तोत्र (Maa Kushmanda Stotra)
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहि दुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
मां कूष्मांडा का कवच (Maa Kushmanda Kavach)
हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिग्विदिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजम् सर्वदावतु॥
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