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एक राक्षस के आगे त्रिदेव भी हो गए थे बेबस, जानें मां कालरात्रि की रोचक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब शुंभ निशुंभ और रक्तबीज नामक दैत्यों ने अपने बल के मग्न में चूर होकर तीनों लोक में हाहाकार मचाना शुरू कर दिया और स्वर्ग लोक पर कब्जा कर लिया, तो सभी देवतागण ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव के शरण में गए. लेकिन त्रिदेव भी...

Updated on: 04 Oct 2022, 02:38 PM

नई दिल्ली:

Shardiya Navratri 2022 Day 7 Maa Kaalratri Katha: नवरात्रि के सप्तमी तिथि मां कालरात्रि की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. मां कालरात्रि अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करने वाली हैं, इसलिए माता को शुभंकारी देवी भी कहा जाता है. मां कालरात्रि का यह स्वरूप अत्यंत विकराल और भयानक है, यह देवी दुर्गा के विनाशकारी अवतारों में से एक है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां कालरात्रि का इसी दिन नेत्र खोला जाता है. माता शत्रुओं का विनाश करती हैं और भक्तों की रक्षा करती हैं. ऐसे में चलिए जानते हैं मां कालरात्रि की व्रत कथा. 

मां कालरात्रि की कथा (Maa Kaalratri Vrat Katha)
हिंदू धर्म की मान्यताओं  के अनुसार माता कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे हमेशा के लिए खुल जाते हैं. मां के एक अक्षर का मंत्र कानों में पड़ने से दुरात्मा भी मधुर वाणी बोलने वाला वक्ता बन जाता हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार जब शुंभ निशुंभ और रक्तबीज नामक दैत्यों ने अपने बल के मग्न में चूर होकर तीनों लोक में हाहाकार मचाना शुरू कर दिया और स्वर्ग लोक पर कब्जा कर लिया, तो सभी देवतागण ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव के शरण में गए.

भगवान शिव ने सभी देवतागण को देवी भगवती की अराधना करने के लिए कहा. भगवान शिव शंकर ने माता पार्वती से अनुरोध किया कि हे देवी तुम तुरंत उस राक्षस का संहार करके देवताओं को उनके राजभोग वापस दिलाओं. देवताओं की अराधना से प्रसन्न होकर मां भगवती ने शुंभ निशुंभ का वध करने के लिए मां कालरात्रि का रूप धारण किया. मां दुर्गा रक्तबीज का वध कर रहे थी, उस वक्त रक्तबीज के शरीर से जितना खून धरती पर गिरता था, उससे वैसे ही सैकड़ों दानव उत्पन्न हो जाते थे.

मां दुर्गा ने कालरात्रि से उन राक्षसों को खा जाने का निवेदन किया. तब मां कालिका ने रक्तबीज के रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही उसे अपने मुंह में लेना शुरू कर दिया. मां कालिका रणभूमि में असुरों का गला काटते हुए गले में मुंड की माला पहनने लगी. इस तरह से रक्तबीज युद्ध में मारा गया. मां दुर्गे का यह स्वरूप कालरात्रि कहलाता है.