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Shani Pradosh 2020: प्रदोष व्रत करने से दूर होते हैं सारे कष्ट, मिलती है मोक्ष की प्राप्ति

आज यानि की शनिवार को शनि प्रदोष का व्रत है. मान्यताओं के मुताबिक, इस व्रत का खास महत्व है और इसे करने वालों को लंबी आयु का वरदान मिलता है. प्रदोष का व्रत हर महीने  शुक्ल और कृष्ण पक्ष को आता है.

Updated on: 12 Dec 2020, 12:31 PM

नई दिल्ली:

आज यानि की शनिवार को शनि प्रदोष का व्रत है. मान्यताओं के मुताबिक, इस व्रत का खास महत्व है और इसे करने वालों को लंबी आयु का वरदान मिलता है. प्रदोष का व्रत हर महीने  शुक्ल और कृष्ण पक्ष को आता है. इस व्रत में भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है. शनि प्रदोष का व्रत करने वालों को भगवान भोलेनाथ के साथ ही शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है.

पुराणों के मुताबिक, प्रदोष के समय भगवान शिव कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं. इसी वजह से लोग शिव जी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन व्रत के साथ विधि-विधान से पूजा करते हैं. शनि प्रदोष का व्रत करने से भक्तों को सभी परेशानियों से मुक्ति मिलती है और मृत्यु पश्चात उन्हें मोक्ष मिलता है.

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भगवान शनि की मिलती है विशेष कृपा-

प्रदोष के दिन भगवान शनि देव की पूजा करने से शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या और शनि की महादशा से छुटकारा मिलता है. शनि प्रदोष के दिन पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं. इसके अलावा शनि मंदिर में जाकर सच्चे दिल से पूजा करें.

शनि प्रदोष व्रत मुहूर्त

12 दिसंबर-  शाम 05:15 बजे से शाम 07:57 बजे तक

मार्गशीर्ष, कृष्ण त्रयोदशी

प्रारम्भ- सुबह 07 बजकर 02 मिनट (12 दिसंबर)

समाप्त- सुबह: 03 बजकर 52 मिनट (13 दिसंबर)

शनि प्रदोष व्रत की कथा-

स्कंद पुराण की पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी. एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था. शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था. उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी. ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया.

कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई. वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई. ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भदेश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था. ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी. ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया.

एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई. ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त 'अंशुमती' नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे. गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया. दूसरे दिन जब वह दुबारा गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है. भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया.

इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया. यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था. स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती.