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Putrada Ekadashi 2025 Photograph: (Freepik)
Putrada Ekadashi 2025: सावन शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है. यह एकादशी सावन शुक्ल पक्ष की तृतीया को रखा जाता है. जो कि आज है यानी की 5 अगस्त को है. यह एकादशी संतान सुख की कामना रखने वाले दंपतियों के लिए अत्यंत फलदायी मानी जाती है. वहीं जो महिलाएं एकादशी के दिन व्रत रख रही हैं, उनके लिए इसे बेहद सौभाग्यशाली माना जाता है. बता दें कि इस एकादशी के महत्व के बारे में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया था. आइए आपको इसकी व्रत कथा के बारे में बताते हैं.
क्या है कथा
अर्जुन ने एकादशी के महत्व के बारे में सुनते हुए श्री कृष्ण से पूछा- हे प्रभु, मुझे अब आप श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी की कथा सुनाने की कृपा करें. इसके बाद श्री कृष्ण ने कहा- हे धनुर्धर, श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी की कथा को सुनने मात्र से अनंत यज्ञ के बराबर फलों की प्राप्ति होती है. प्राचीन काल में महिष्मती नगरी पर राजा महीजित का शासन था. राजा अत्यंत धर्मात्मा, दानवीर और प्रजापालक थे. उनकी प्रजा उनसे बहुत प्रेम करती थी और राजा भी अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करते थे. सब कुछ होते हुए भी राजा महीजित दुखी रहते थे, क्योंकि उनके कोई संतान नहीं थी. संतानहीन होने के कारण उन्हें चिंता सताती रहती थी कि उनके बाद राज्य का उत्तराधिकारी कौन होगा. उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए कई उपाय किए, अनेक यज्ञ करवाए, दान-पुण्य किए, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ.
अपनी इस व्यथा को लेकर राजा ने अपने राज्य के विद्वान ब्राह्मणों और महात्माओं से सलाह ली. राजा की समस्या सुनकर सभी ब्राह्मण और महात्मा गहन विचार-विमर्श करने लगे. अंत में, उन्होंने एक महान ऋषि, लोमश ऋषि के पास जाने का सुझाव दिया. लोमश ऋषि त्रिकालदर्शी थे और उन्हें भूत, भविष्य और वर्तमान का ज्ञान था. राजा महीजित अपने मंत्रियों और कुछ ब्राह्मणों के साथ लोमश ऋषि के आश्रम पहुंचे. उन्होंने श्रद्धापूर्वक ऋषि को प्रणाम किया और अपनी व्यथा सुनाई. ऋषि ने राजा की समस्या सुनकर अपनी दिव्य दृष्टि से उनके पूर्व जन्मों का अवलोकन किया.
अवलोकन के बाद ऋषि ने बताया, "हे राजन! आपके पूर्व जन्म के कर्मों के कारण आप संतानहीन हैं. पूर्व जन्म में आप एक धनी वैश्य थे और आपने कभी किसी को कुछ नहीं दिया. एक बार, आप प्यास से व्याकुल होकर एक जलाशय के पास पहुंचे, जहाँ एक गाय अपने बछड़े के साथ पानी पी रही थी. आपने उस प्यासी गाय और बछड़े को पानी पीने से रोक दिया और स्वयं पानी पी लिया. आपके इसी कर्म के कारण आपको यह संतानहीनता का दुख भोगना पड़ रहा है."
राजा यह सुनकर अत्यंत दुखी हुए और उन्होंने ऋषि से इस पाप के प्रायश्चित का उपाय पूछा. लोमश ऋषि ने कहा, "हे राजन! चिंता न करें. इसका एक समाधान है. आप और आपकी रानी, दोनों सावन मास के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी का व्रत करें. यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इसके प्रभाव से व्यक्ति को संतान की प्राप्ति होती है. आप सभी प्रजाजनों से भी इस व्रत को रखने का आग्रह करें. यदि आप सब मिलकर एकादशी का व्रत करेंगे और उसका पुण्य मुझे अर्पित करेंगे, तो अवश्य ही आपको संतान की प्राप्ति होगी."
राजा महीजित ने लोमश ऋषि के वचन सुनकर बहुत प्रसन्न हुए. वे अपनी राजधानी लौटे और ऋषि के कहे अनुसार अपनी रानी के साथ विधि-विधान से पुत्रदा एकादशी का व्रत किया. उन्होंने अपनी समस्त प्रजा से भी इस व्रत को रखने का आग्रह किया. सभी ने मिलकर श्रद्धापूर्वक यह व्रत रखा. एकादशी के दिन राजा और प्रजा ने भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की, व्रत कथा का श्रवण किया और रात्रि जागरण कर भगवान का स्मरण किया. द्वादशी के दिन व्रत का पारण किया गया और लोमश ऋषि के बताए अनुसार, सभी ने अपने व्रत का पुण्य राजा को समर्पित कर दिया.
व्रत के प्रभाव और भगवान विष्णु की कृपा से कुछ समय बाद रानी गर्भवती हुईं और उन्होंने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया. राजा महीजित और उनकी प्रजा में खुशियों की लहर दौड़ गई. राजा ने पुत्र का नाम सुकृत रखा और वह बड़ा होकर एक धर्मात्मा और प्रतापी राजा बना.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)