Sapinda Marriage: क्या है सपिंड विवाह और इस पर क्यों लगाया गया है प्रतिबंध

Sapinda Marriage: सपिंड विवाह एक प्राचीन परंपरा है जो कुछ क्षेत्रों में अभी भी प्रचलित है. इसमें एक विधवा महिला किसी अनुरूप पुरुष के साथ विवाह करती है, जो सामाजिक और धार्मिक परंपराओं के अनुसार उसके पति का बेटा होता है

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Mohit Sharma
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sapinda marriage( Photo Credit : File Pic)

Sapinda Marriage: सपिंड विवाह एक प्राचीन परंपरा है जो कुछ क्षेत्रों में अभी भी प्रचलित है. इसमें एक विधवा महिला किसी अनुरूप पुरुष के साथ विवाह करती है, जो सामाजिक और धार्मिक परंपराओं के अनुसार उसके पति का बेटा होता है. इसका मुख्य उद्देश्य होता है पति के संतानों को उनके परम्परागत संपत्ति और समाजिक दर्जा की सुनिश्चितता करना. कुछ समाजों और क्षेत्रों में सपिंड विवाह को समर्थन मिलता है, जबकि कुछ जगहों पर यह अवैध और अधिकांश न्यायिक संविधानों के खिलाफ माना जाता है. भारतीय कानून के अनुसार, सपिंड विवाह को अवैध माना जाता है और इसे उचित नहीं माना जाता. कुछ राज्यों और समुदायों में, सपिंड विवाह को नियंत्रित करने और इसे अवरुद्ध करने के लिए कठिनाईयाँ लगाई गई हैं और संबंधित क़ानूनी कदम उठाए गए हैं. इसके बावजूद, कुछ स्थानों में यह प्रथा अब भी अपराधिक रूप से चल रही है और सामाजिक दबाव के तहत लोग इसे अपनाने को बाध्य होते हैं. 

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सपिंड विवाह क्या है?

  • सपिंड विवाह उन दो व्यक्तियों के बीच विवाह को कहा जाता है जिनके पूर्वज समान होते हैं.
  • यह विवाह हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत प्रतिबंधित है.

सपिंड विवाह के प्रतिबंध के कुछ कारण हैं:

आनुवंशिक रोगों का खतरा: सपिंड विवाह से जन्मे बच्चों में आनुवंशिक रोगों का खतरा बढ़ जाता है.

सामाजिक बुराइयाँ: सपिंड विवाह से समाज में अनेक सामाजिक बुराइयाँ पनपती हैं, जैसे कि जातिवाद, भेदभाव, और अंधविश्वास.

सपिंड विवाह के प्रतिबंध के कानूनी प्रावधान:

  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5 में सपिंड विवाह को अमान्य घोषित किया गया है.
  • इस धारा के तहत, यदि कोई दो व्यक्ति सपिंड विवाह करते हैं, तो उन्हें 6 महीने से लेकर 1 वर्ष तक की जेल की सजा हो सकती है.
  • धारा 11 के तहत, यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर सपिंड विवाह करता है, तो उसे 2 वर्ष तक की जेल की सजा हो सकती है.
  • धारा 18 के तहत, यदि कोई व्यक्ति सपिंड विवाह करता है और उससे बच्चे पैदा होते हैं, तो उन बच्चों को नाजायज माना जाएगा.

सपिंड विवाह के प्रतिबंध के सामाजिक प्रावधान:

हिंदू समाज में सपिंड विवाह को अनैतिक और अनुचित माना जाता है.

यह समाज में अनेक सामाजिक बुराइयों को जन्म देता है.

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सपिंड विवाह एक अनुचित और गैरकानूनी प्रथा है. इससे आनुवंशिक रोगों का खतरा बढ़ जाता है और समाज में अनेक सामाजिक बुराइयाँ पनपती हैं. 

सपिंड विवाह के प्रतिबंध के कुछ उदाहरण:

माता-पिता और बच्चों के बीच विवाह: यह सबसे स्पष्ट उदाहरण है.

भाई-बहन के बीच विवाह: यह भी सपिंड विवाह का एक स्पष्ट उदाहरण है.

चाचा-भतीजी के बीच विवाह: यह भी सपिंड विवाह का एक उदाहरण है.

मामा-भांजी के बीच विवाह: यह भी सपिंड विवाह का एक उदाहरण है.

दादा-पोती के बीच विवाह: यह भी सपिंड विवाह का एक उदाहरण है.

नाना-नातिनी के बीच विवाह: यह भी सपिंड विवाह का एक उदाहरण है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

Source : News Nation Bureau

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