Sant Ravidas Jayanti 2024: संत रविदास 14वीं और 15वीं शताब्दी के एक महान संत कवि थे. वे भक्ति आंदोलन के प्रमुख स्तंभों में से एक थे और उन्होंने सामाजिक सुधार के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका जन्म 1377 ईस्वी में हुआ था. वे एक निम्न परिवार से थे, जो उस समय समाज में सबसे निचले पायदान पर था. उन्होंने अपना जीवन भक्ति और सामाजिक सुधार के लिए समर्पित कर दिया. उन्होंने जाति-पांति और ऊंच-नीच के भेदभाव का विरोध किया. उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों को समानता और भाईचारे का संदेश दिया. 1540 ईस्वी में उनका निधन हो गया. उन्होंने अनेक भक्ति गीत और कविताएं लिखीं. उनकी रचनाओं में "आदि ग्रंथ" में 41 पद शामिल हैं. उनकी रचनाओं में "अमीर खुसरो" की भाषा और "कबीर" की विचारधारा का प्रभाव देखा जा सकता है. भक्ति आंदोलन को गति प्रदान करने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही. सामाजिक सुधार के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने जाति-पांति और ऊंच-नीच के भेदभाव का विरोध किया. उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों को समानता और भाईचारे का संदेश दिया.
संत रविदास जी के निम्नलिखित 10 उपदेश हैं
"रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मारूं प्राण की क्षमति नहीं" - भगवान को उनकी महिमा में समर्पित करें, लेकिन स्वयं को अहंकार से दूर रखें.
"सत्य संगति कीजिए, सोई पाइए अरु न कोई. राम नाम रसि जपि जाई, तब पाइए निर्मल होई" - सत्य के साथ रहें और भगवान का नाम जपें, जिससे मन और आत्मा शुद्ध होते हैं.
"हरि के नाम का हरण करे, ताको लाख चौरासी जनमु जन्म के संबंध छूट. रविदास ज्ञानी कहावत है, हरिजन को रहन संग सुख" - भगवान का नाम जपने से संसारिक बंधनों से मुक्ति मिलती है.
"सांच सोचि ऐसी जीभी, लिव लागि होइह जहां तेही" - सोच-समझकर अच्छे कार्य करें, जिससे कि जीवन में सही दिशा में प्रगति हो.
"सच्चे संत सतगुरु पायिए, तिन के चरण अनुरागि" - सत्पुरुषों के संदेश का पालन करें और उनके प्रति श्रद्धा और समर्पण दिखाएं.
"जो दीये सो धर्म है, ज्ञान अग्यान देह" - भगवान की भक्ति और सेवा करना ही सबसे ऊचा धर्म है.
"संत नाम की माला जपी, नित्य चरण न धुलाय" - भगवान का नाम जपते रहें और उनके चरणों को हमेशा धोते रहें.
"संत कहहु अब आखिर क्या होई, जो चित्त धरि सतिगुर मान" - संत कहते हैं कि वही सच्चा संत है जो सतगुरु की शिक्षा को ध्यान में रखता है.
"संत संगति कैसे पाईऐ, जो कुमति संत संगि" - संत संगति को कैसे पाया जाए, यह उनसे पूछना चाहिए जो संत संगति में हैं.
"साच तेस न होवत लागि, तिन का जाना कारण" - वही आपके सहयोगी हैं जो सत्य को अस्तित्व में लाते हैं, इसलिए उनको अच्छे से समझना आवश्यक है.
सम्मान: उन्हें "संत शिरोमणि" की उपाधि दी गई है. उनके नाम पर अनेक संस्थान और सड़कें स्थापित हैं. उनकी जयंती और पुण्यतिथि हर साल मनाई जाती है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
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