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Sankashti Chaturthi 2020: संकष्टी चतुर्थी आज, शुभ मुहूर्त पर ऐसे करें पूजा, मिलेगा विशेष फल

हर महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है. इस महीने ये तिथि आज यानी 8 जून को पड़ रही है.

Updated on: 08 Jun 2020, 10:10 AM

नई दिल्ली:

हर महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है. इस महीने ये तिथि आज यानी 8 जून को पड़ रही है. मान्यता है कि इस दिन अगर पूरे विधि विधान से भगवान गणेश की पूजा की जाए तो गणपति सारी इच्छाएं पूरी करते हैं. बताया जाता है कि संकष्टी चतुर्थी को भगवान गणपति की आराधना करके विशेष वरदान प्राप्त किया जा सकता है. इसके अलावा स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं भी दूर हो जाती हैं.

बता दें, पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी और अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है.

संकष्टी चतुर्थी मुहूर्त 

चतुर्थी तिथि शुरू - जून 08, 2020 को शाम 07:56 बजे 
चतुर्थी तिथि खत्म - जून 09, 2020 को शाम 07:38 बजे
चन्द्रोदय समय - रात्रि 09:54 बजे

पूजा विधि

संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवना गणेश को प्रसन्न करने के लिए विधि विधान से उनकी पूजा करें, इसके लिए सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और हल्के लाल या पीले रंग के कपड़े पहनें. इसके बाद भगवान गणपति की प्रतिमा को लाल कपड़ा बिछाकर विराजमान करें. भगवान गणेश की पूजा पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुंह करके करें. इसके बाद पूजा करते समय भगवान गणेश को गुलाब के फूल भी अर्पित करें. प्रसाद के तौर पर केला और मोदक जरूर रखें. इसके बाद इसके बाद ॐ गं गणपतये नमः मंत्र का दाप करें. संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन करना भी बेहद शुभ माना जाता है.

संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा

एक बार मां पार्वती स्नान के लिए गईं तो उन्होंने द्वार पर भगवान गणेश को खड़ा कर दिया और कहा कोई अंदर न आ पाए. कुछ देर बाद भगवान शिव वहां पहुंच गए तो गणेश जी ने उन्हें अंदर जाने से रोका. भगवान शिव के काफी बोलने पर भी गणपति ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया तो भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया. पुत्र गणेश का यह हाल देखकर मां पार्वती बहुत दु,खी हुईं और शिव जी से अपने पुत्र को जीवित करने का हठ करने लगीं.

इसके बाद भगवान शिव ने भगवान गणेश को हाथी का सिर लगाकर दूसरा जीवन दिया गया. तब से उनका नाम गजमुख , गजानन हुआ. इसी दिन से भगवान गणपति को प्रथम पूज्य होने का गौरव भी हासिल हुआ. इसी के साथ उन्हें वरदान मिला कि जो भी भक्त उनकी पूजा और व्रत करेगा उनके सारे संकटों का हरण होगा और मनोकामना पूरी होगी.