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डूबते सूर्य को अर्घ्‍य के साथ संझिया घाट का समापन, आज उगते सूर्य को दिया जाएगा अर्घ्‍य 

चार दिवसीय छठ पूजा के तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्‍य दे दिया गया है. अब आज के भोर में छठी मइया की पूजा के बाद उगले सूर्य को अर्घ्‍य दिया जाएगा. कल सूर्य भगवान को अर्घ्‍य देने के बाद व्रती लोग परायण करेंगे.

Updated on: 20 Nov 2020, 11:43 PM

नई दिल्ली:

चार दिवसीय छठ पूजा के तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्‍य दे दिया गया है. अब आज के भोर में छठी मइया की पूजा के बाद उगले सूर्य को अर्घ्‍य दिया जाएगा. कल सूर्य भगवान को अर्घ्‍य देने के बाद व्रती लोग परायण करेंगे. छठ पूजा बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, दिल्‍ली, मुंबई और नेपाल के कुछ हिस्सों में प्रमुखता से मनाया जाता है. इस साल 18 नवंबर को नहाय-खाय से छठ पूजा की विधिवत शुरुआत हुई थी और इसका समापन कल यानी 21 नवंबर को होगा. 

उत्तर प्रदेश और खासकर बिहार में मनाया जाने वाला ये पर्व काफी खास होता है. सूर्य देव की आराधना और संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए यह पर्व मनाया जाता है. कार्तिक मास की षष्‍ठी तिथि को इस पर्व की प्रमुखता होती है. नहाय खाय से इस पर्व की शुरुआत होती है और अगले दिन खरना होता है. षष्ठी तिथि को छठ पूजा होती है, जिसमें डूबते सूर्य को अर्घ्‍य दिया जाता है. सप्तमी तिथि को उगले सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का परायण होता है. 

छठ पर्व का पौराणिक महत्‍व : पुराण में वर्णित है कि राजा प्रियंवद की कोई संतान नहीं थी. तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी. इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वह पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ. पुत्र को लेकर प्रियंवद श्मशान गए और खुद भी प्राण त्यागने लगे. तभी आसमान से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा, जिसमें बैठी देवी ने कहा, 'मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं.' इसके बाद देवी ने शिशु के मृत शरीर को स्पर्श किया और वह जीवित हो उठा. इसके बाद से ही राजा ने षष्‍ठी तिथि को त्‍योहार मनाने की घोषणा कर दी. 
 
माता सीता ने भी की थी सूर्यदेव की उपासना : एक कथा राम-सीता से भी जुड़ी है. माना जाता है कि राम और सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद जब अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला किया. पूजा के लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया गया. मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल छिड़ककर उन्हें पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने को कहा. तब माता सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर 6 दिनों तक भगवान सूर्यदेव की पूजा की थी.

छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से : माना जाता है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी. सूर्यपुत्र कर्ण ने सबसे पहले सूर्य की पूजा करके इस पर्व की शुरुआत की थी. कर्ण सूर्य भगवान के परम भक्त थे और वे रोजाना घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे. आज भी छठ में अर्घ्य देने की परंपरा चली आ रही है. 

द्रौपदी ने भी रखा था व्रत  : छठ पर्व की एक और प्रचलित कथा के अनुसार, पांडव जब सारा राजपाठ जुए में हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया था. इस व्रत के रखने से उनकी मनोकामना पूरी हुई और पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया. सूर्य देव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है. इसलिए छठ पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी जाती है.

21 नवंबर को इस समय दें उगते सूर्य को अर्घ्‍य

  • बिहार : 6.09
  • पश्चिम बंगाल : 5.53
  • दिल्ली : 6.49
  • मध्‍य प्रदेश : 6.38
  • छत्तीसगढ़ : 6.17
  • ओडिशा : 6.00
  • झारखंड : 6.07
  • उत्तरप्रदेश : 6.30