Sita Navami 2022 Stotra and Stuti: सीता नवमी के दिन पढ़ें ये स्तोत्र और स्तुति, कष्टों का होगा अंत और धन-दौलत की कभी नहीं होगी कमी
इस साल 10 मई को सीता नवमी (Sita navami 2022) पड़ रही है. इस दिन माता को सुहाग का समान अर्पित करके जानकी स्तोत्र का पाठ करें. इसके साथ ही जीवन के तमाम कष्टों का अंत होगा और धन दौलत जैसी किसी चीज (sita navami 2022 janki stotram) की कमी नहीं होगी.
नई दिल्ली:
इस साल 10 मई को सीता नवमी (Sita navami 2022) पड़ रही है. वैशाख के महीने में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मां सीता प्रकट हुई थी. देवी सीता का विवाह भगवान राम से हुआ था, जिनका जन्म भी चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के दौरान नवमी तिथि को हुआ था. हिंदू कैलेंडर में सीता जयंती (sita navami 2022 puja vidhi) रामनवमी के एक महीने के बाद आती है. जनक पुत्री होने के कारण उन्हें जानकी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन को बेहद शुभ माना गया है.
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भगवान राम को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है. वहीं माता सीता को मां लक्ष्मी का रूप माना जाता है. सीता नवमी (sita navami kab hai) के दिन माता सीता और भगवान राम की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है. इस दिन माता को सुहाग का समान अर्पित करके जानकी स्तोत्र का पाठ करें. इससे आपको नारायण और मां लक्ष्मी दोनों की कृपा प्राप्त होगी. इसके साथ ही जीवन के तमाम कष्टों का अंत होगा और धन दौलत जैसी किसी चीज (sita navami 2022 janki stotram) की कमी नहीं होगी.
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जानकी स्तोत्र (sita navami 2022 janki stotra)
नीलनीरज-दलायतेक्षणां लक्ष्मणाग्रज-भुजावलम्बिनीम्।
शुद्धिमिद्धदहने प्रदित्सतीं भावये मनसि रामवल्लभाम्।
रामपाद-विनिवेशितेक्षणामङ्ग-कान्तिपरिभूत-हाटकाम्।
ताटकारि-परुषोक्ति-विक्लवां भावये मनसि रामवल्लभाम्।।
कुन्तलाकुल-कपोलमाननं, राहुवक्त्रग-सुधाकरद्युतिम्।
वाससा पिदधतीं हियाकुलां भावये मनसि रामवल्लभाम्।।
कायवाङ्मनसगं यदि व्यधां स्वप्नजागृतिषु राघवेतरम्।
तद्दहाङ्गमिति पावकं यतीं भावये मनसि रामवल्लभाम्।।
इन्द्ररुद्र-धनदाम्बुपालकै: सद्विमान-गणमास्थितैर्दिवि।
पुष्पवर्ष-मनुसंस्तुताङ्घ्रिकां भावये मनसि रामवल्लभाम्।।
संचयैर्दिविषदां विमानगैर्विस्मयाकुल-मनोऽभिवीक्षिताम्।
तेजसा पिदधतीं सदा दिशो भावये मनसि रामवल्लभाम्।।
।।इति जानकीस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।
श्री जानकी स्तुति: (sita navami 2022 janki stuti)
जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम्।
जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम्।।1।।
दारिद्र्यरणसंहर्त्रीं भक्तानाभिष्टदायिनीम्।
विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम्।।2।।
भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम्।
पौलस्त्यैश्वर्यसंहत्रीं भक्ताभीष्टां सरस्वतीम्।।3।।
पतिव्रताधुरीणां त्वां नमामि जनकात्मजाम्।
अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम्।।4।।
आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहम्।
प्रसादाभिमुखीं लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभाम्।।5।।
नमामि चन्द्रभगिनीं सीतां सर्वाङ्गसुन्दरीम्।
नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरम्।।6।।
पद्मालयां पद्महस्तां विष्णुवक्ष:स्थलालयाम्।
नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननाम्।।7।।
आह्लादरूपिणीं सिद्धिं शिवां शिवकरीं सतीम्।
नमामि विश्वजननीं रामचन्द्रेष्टवल्लभाम्।
सीतां सर्वानवद्याङ्गीं भजामि सततं हृदा।।8।।
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