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Ramadan 2020: जानें रोजे रखने के नियम और महत्व, अल्लाह होते हैं मेहरबान, मिलता है ये लाभ

रमजान में रोजे रखने से मतलब सिर्फ खाने, पीने की चीजों से दूर रहना नहीं, बल्कि रोजा रखने के बाद व्यक्ति को गलत कामों से भी बचना चाहिए

Updated on: 22 Apr 2020, 02:34 PM

नई दिल्ली:

इस्लाम में रमजान (Ramazan 2020) का महीना बहुत ही पवित्र माना जाता है. इस महीने में रोजे रखने का बहुत अधिक महत्व होता है. 7 साल की उम्र से हर सेहतमंद मुसलमान रोजा रखना शुरू करते हैं. रमजान के पूरे एक महीने तक मुस्लिम समुदाय के लोग रोजे रखते हैं. रमजान में रोजे रखने से मतलब सिर्फ खाने, पीने की चीजों से दूर रहना नहीं, बल्कि रोजा (Roza) रखने के बाद व्यक्ति को गलत कामों से भी बचना चाहिए. रोजे में व्यक्ति को न तो गलत बोलना चाहिए और न ही सुनना.

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न बुरा सुनें और न ही बुरा कहें

रोजे के दौरान सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का ही नियम नहीं है, बल्कि आंख, कान और जीभ का भी रोज़ा रखा जाता है यानि न बुरा देखें, न बुरा सुनें और न ही बुरा कहें. इसके साथ ही इस बात का भी ध्‍यान रखें कि आपके द्वारा बोली गई बातों से किसी की भावनाएं आहत न हों. रमजान के महीने में कुरान पढ़ने का अलग ही महत्व होता है. हर दिन की नमाज के अलावा रमजान में रात के वक्त एक विशेष नमाज भी पढ़ी जाती है, जिसे तरावीह कहते हैं. आइए, जानते हैं, कब से शुरू हो रहा है यह पावन महीना और क्यों यह त्योहार मुस्लिम समुदाय के लिए महत्वपूर्ण माह होता है.

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इबादत का फल बाकी महीनों के मुकाबले 70 गुना अधिक 

इस बार अगर चांद का दीदार 23 अप्रैल को हो गया, तो 24 अप्रैल से रोजे रखे जाएंगे. लेकिन अगर चांद 24 अप्रैल को दिखा, तो 25 अप्रैल से रोजे रखे जाएंगे. इस्लाम में बताया गया है कि रोजे रखने से अल्लाह खुश होते हैं. सभी दुआएं कुबूल होते हैं.  ऐसी मान्यता है कि इस महीने की गई इबादत का फल बाकी महीनों के मुकाबले 70 गुना अधिक मिलता है. चांद के दिखने के बाद से ही मुस्लिम समुदाय के लोग सुबह के समय सहरी खाकर इबादतों का सिलसिला शुरू कर देते हैं. इसी दिन पहला रोजा रखा जाता है. सूरज निकलने से पहले खाए गए खाने को सहरी कहा जाता है. सूरज ढलने के बाद रोजा खोलने को इफ्तार कहा जाता है.