हिंदू धर्म में व्रत त्यौहारों का खास महत्व होता है, हर महीने कोई न कोई खास व्रत या पर्व जरूर होता है. इन्ही सब में एक होता एकादशी का व्रत जिसे काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. इस रखने से कई तरह की मनोकामनाएं पूर्ण होती है साथ ही कई बीमारियां से भी छुटकारा मिलता है. ऐसे तो कई तरह के एकादशी व्रत होते है, जिनमें से एक है पुत्रदा एकादशी जो लोग संतान की प्राप्ति के लिए करते हैं. मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान मिलने के साथ ही संतान की समस्याएं भी खत्म होती है. इस बार पुत्रदा एकादशी 6 जनवरी को मनाई जाएगी.
और पढ़ें: शनिवार को पढ़ें शनि चालीसा, भगवान शनिदेव की मिलेगी विशेष कृपा
पुत्रदा एकादशी की तिथि और मुहूर्त-
पौष पुत्रदा एकादशी की तिथि- 6 जनवरी 2020
एकादशी तिथि प्रारम्भ- 6 जनवरी 2020 को सुबह 3 बजकर 6 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त- 7 जनवरी 2020 को सुबह 4 बजकर 2 मिनट तक
पारण (व्रत तोड़ने का) की तिथि और समय: 7 जनवरी 2020 को दोपहर 1 बजकर 30 मिनट से दोपहर 3 बजकर 55 मिनट तक.
संतान प्राप्ति के लिए ऐसे करें पूजा
- सबसे पहले प्रात: काल पति-पत्नी जोड़ें में भगवान कृष्ण की पूजा करें.
- भगवान की मूर्ति पर पीले फूल, फल, पंचामृत और तुलसी पत्ता चढ़ाएं.
- संतान गोपाल मंत्र का जाप करें.
- भगवान कृष्ण को तुलसी की माला पहनाएं और पंचामृत का भोग लगाएं
- हो सके तो पौत्रदा पुत्र एकादशी का व्रत एक दिन उपवास रख कर करें.
- ॐ क्लीं कृष्णाय नमः मंत्र का 108 बार जाप करें
- मंत्र जापने के बाद पति और पत्नी एक साथ प्रसाद ग्रहण करें.
- यह व्रत दो प्रकार से रखा जाता है- निर्जल व्रत और फलाहारी या जलीय व्रत.
ये भी पढ़ें: Panchang 2020: यहां देखें साल 2020 के सभी तीज त्योहार और शुभ मुहूर्तों की लिस्ट
पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था. उसके कोई पुत्र नहीं था. उसकी स्त्री का नाम शैव्या था. वह निपुत्री होने के कारण सदैव चिंतित रहा करती थी. राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा. राजा को भाई, बांधव, धन, हाथी, घोड़े, राज्य और मंत्री इन सबमें से किसी से भी संतोष नहीं होता था. वह सदैव यही विचार करता था कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान करेगा. बिना संतान के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूंगा. जिस घर में संतान न हो उस घर में सदैव अंधेरा ही रहता है. इसलिए संतान उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए.
जिस मनुष्य ने संतान का मुख देखा है, वह धन्य है. उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है अर्थात उनके दोनों लोक सुधर जाते हैं. पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में संतान, धन आदि प्राप्त होते हैं. राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था. एक समय तो राजा ने अपने शरीर को त्याग देने का निश्चय किया परंतु आत्मघात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया. एक दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ अपने घोड़े पर चढ़कर वन को चल दिया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा. उसने देखा कि वन में मृग, व्याघ्र, सूअर, सिंह, बंदर, सर्प आदि सब भ्रमण कर रहे हैं. हाथी अपने बच्चों और हथिनियों के बीच घूम रहा है.
और पढ़ें: साल 2020 में किसकी चमकेगी किस्मत और किसका रूठेगा भाग्य, यहां जानें
इस वन में कहीं तो गीदड़ अपने कर्कश स्वर में बोल रहे हैं, कहीं उल्लू ध्वनि कर रहे हैं. वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच-विचार में लग गया. इसी प्रकार आधा दिन बीत गया. वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दु:ख प्राप्त हुआ, क्यों?
राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा. थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा. उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे. उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे. उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे. राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया. राजा को देखकर मुनियों ने कहा- 'हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं. तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो." राजा ने पूछा- "महाराज आप कौन हैं, और किसलिए यहां आए हैं. कृपा करके बताइए.' मुनि कहने लगे, 'हे राजन! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं.'
यह सुनकर राजा कहने लगा, 'महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक संतान का वरदान दीजिए.' मुनि बोले- 'हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है. आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में संतान होगी.'
ये भी पढ़ें: आखिर भगवान शिव शरीर पर क्यों लगाते हैं भस्म, जानें इसका महत्व और पूजा-विधि
मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया. इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया. कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ. वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ. मान्यता है कि संतान की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए. कहते हैं कि जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है.
Source : News Nation Bureau