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भगवान शिव को समर्पित है गुरु प्रदोष व्रत, जानें क्या है कारण? 

हर महीने दो प्रदोष व्रत होते हैं. एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष में. मार्गशीर्ष या अगहन माह की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाएगा.

Updated on: 13 Dec 2021, 10:17 AM

highlights

  • प्रदोष व्रत भगवान शिव (Lord Shiva) को समर्पित किया जाता है
  • विष पीकर महादेव ने संसार की रक्षा की, ऐसे में पूरा विश्व भगवान का ऋणी हो गया

नई दिल्ली:

Pradosh Vrat Katha 2021: हर माह में दो प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) रखे जाते हैं. एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष में. मार्गशीर्ष या अगहन माह की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। प्रदोष व्रत भगवान शिव (Lord Shiva) को समर्पित किया जाता है. इस बार 16 दिसंबर, गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat 2021) रखा जाएगा. गुरुवार को इस व्रत के होने से इसे गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat 2021) कहेंगे. इस दिन भगवान शिव के साथ माता पार्वती (Mata Parvati) और भगवान विष्णु (Lord Vishnu) का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है. आइए जानते हैं प्रदोष व्रत भगवान शिव को क्यों समर्पित किया जाता है। 

भगवान शिव को समर्पित है व्रत

पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब भी विष निकाला तो महादेव ने सृष्टि को बचाने के लिए वो विष पी लिया। विष पीते ही महादेव का कंठ और शरीर नीला पड़ गया। उन्हें असहनीय जलन होने लगी। उस समय देवताओं ने जल, बेलपत्र आदि से महादेव की जलन को कम किया।

विष पीकर महादेव ने संसार की रक्षा की, ऐसे में पूरा विश्व भगवान का ऋणी हो गया. उस समय देवताओं ने महादेव की स्तुति की, जिससे महादेव बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने तांडव किया. इस घटना के वक्त त्रयोदशी तिथि और प्रदोष काल था. उस समय से महादेव को ये तिथि और प्रदोष काल सबसे प्रिय हो गया. इसके साथ ही महादेव को प्रसन्न करने को लेकर भक्तों ने त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल में पूजन की परंपरा शुरू कर दी और इस व्रत को प्रदोष व्रत का नाम दिया जाने लगा.

गुरु प्रदोष व्रत की कथा

सप्ताह के जिस दिन प्रदोष व्रत होता है, उसे प्रदोष व्रत के नाम से पुकारा जाता है. गुरुवार के दिन पड़ने के कारण इसे गुरु प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाएगा. हर दिन के हिसाब से प्रदोष व्रत की कथा भी अलग-अलग तरह से होती है. गुरु प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार इन्द्र और वृत्रासुर की सेना में जंग छिड़ गई थी। इस युद्ध के दौरान देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर दिया था. जिससे वृत्रासुर क्रोधित हो गया. आसुरी माया से उसने विकराल रूप लिया और ये देख सभी देवता भयभीत होकर भाग गए। वे गुरु बृहस्पति की शरण में पहुंच गए. तब बृहस्पति देव ने उन्हें वृत्रासुर के बारे में जानकारी दी. वृत्रासुर ने गन्धमादन पर्वत पर कड़ी तपस्या कर शिव जी को प्रसन्न किया था. पूर्व समय में राजा चित्ररथ एक बार अपने विमान से कैलाश पर्वत पहुंचा. वहां शिव के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देखकर उसने उपहास किया. चित्ररथ के वचन सुन माता पार्वती काफी क्रोधित हुईं. उन्होंने उसे एक राक्षस होने का शाप दे डाला. वृत्रासुर बन गया. 

वृत्रासुर बचपन से ही शिवभक्त रहा है. उसे परास्त करने के लिए भगवान शिव को प्रसन्न करना जरूरी है। इसके लिए बृहस्पति प्रदोष व्रत करना जरूरी होगा. देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया. गुरु प्रदोष व्रत  के प्रताप से इन्द्र ने बहुत जल्द ही वृत्रासुर पर विजय प्राप्त कर ली.