Pitru Paksha 2022 Pind Daan aur Mata Sita Ka Shraap: सनातन धर्म में पितृ पक्ष विशेष महत्व रखता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से प्रारंभ होते हैं और आश्विन मास की अमावस्या तिथि पर संपन्न होते हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक, इस वर्ष श्राद्ध पक्ष यानी पितृ पक्ष 10 सितंबर, दिन शनिवार से प्रारंभ हो रहे हैं. वहीं, इसका समापन 25 सितंबर, दिन रविवार को होगा. श्राद्ध को लेकर सीता माता की एक कथा काफी प्रचलित है. आज हम आपको अपने इस लेख के जरिए उसी रोचक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं.
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महर्षि वाल्मिकी द्वारा रचित रामायण में सीता माता द्वारा पिंडदान देकर राजा दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिलने का संदर्भ आता है. वनवास के दौरान भगवान राम, सीता माता और लक्ष्मण पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे थे. वहां श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु राम और लक्ष्मण नगर की ओर चल दिए थे.
सामग्री इकट्ठा करते-करते दोपहर हो गई थी. पिंडदान का निश्चित समय निकलता जा रहा था और सीता जी की व्यग्रता बढ़ती जा रही थी. तभी राजा दशरथ की आत्मा ने पिंडदान की मांग कर दी. गया जी के आगे फल्गू नदी पर अकेली माता सीता असमंजस में पड़ गईं. उन्होंने फल्गू नदी के साथ वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ के निमित्त पिंडदान दे दिया.
थोड़ी देर में भगवान राम और लक्ष्मण लौटे तो उन्होंने कहा कि समय निकल जाने के कारण मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया. बिना सामग्री के पिंडदान कैसे हो सकता है, इसके लिए राम ने सीता से प्रमाण मांगा. तब सीता जी ने कहा कि यह फल्गू नदी की रेत, केतकी के फूल, गाय और वटवृक्ष मेरे द्वारा किए गए श्राद्ध कर्म की गवाही दे सकते हैं.
लेकिन फल्गू नदी, गाय और केतकी के फूल तीनों इस बात से मुकर गए. सिर्फ वट वृक्ष ने सही बात कही. तब सीता जी ने राजा दशरथ का ध्यान करके उनसे ही गवाही देने की प्रार्थना की. राजा दशरथ ने सीता माता की प्रार्थना स्वीकार कर घोषणा की, कि ऐन वक्त पर सीता ने ही मुझे पिंडदान दिया. इस पर राम आश्वस्त हुए लेकिन तीनों गवाहों द्वारा झूठ बोलने पर सीता जी ने उनको क्रोधित होकर श्राप दे दिया.
माता सीता ने श्राप देते हुए कहा था कि फल्गू नदी- जा तू सिर्फ नाम की नदी रहेगी, तुझमें पानी नहीं रहेगा. इस कारण फल्गू नदी आज भी गया में सूखी रहती है. गाय को श्राप दिया कि तू पूज्य होकर भी लोगों का जूठा खाएगी और केतकी के फूल को श्राप दिया कि तुझे पूजा में कभी नहीं चढ़ाया जाएगा.
वटवृक्ष को सीता जी का आशीर्वाद मिला कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा पतिव्रता स्त्री तेरा स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी. यही कारण है कि गाय को आज भी जूठा खाना पड़ता है, केतकी के फूल को पूजा पाठ में वर्जित रखा गया है और फल्गू नदी के तट पर सीताकुंड में पानी के अभाव में आज भी सिर्फ बालू या रेत से पिंडदान दिया जाता है.