Pitru Paksha 2020: पितृ पक्ष में कौओं को भोजन कराना होता है शुभ, जानें क्यों?
पितृ पक्ष (Pitru Paksha) के खत्म होने में अब कुछ ही दिन शेष बचे हैं. 2 सितंबर से शुरू हुआ पितृपक्ष 17 सितंबर को खत्म हो रहा है. भारतीय परंपराओं में पितृ पक्ष का विशेष स्थान है.
नई दिल्ली:
पितृ पक्ष (Pitru Paksha) के खत्म होने में अब कुछ ही दिन शेष बचे हैं. 2 सितंबर से शुरू हुआ पितृपक्ष 17 सितंबर को खत्म हो रहा है. भारतीय परंपराओं में पितृ पक्ष का विशेष स्थान है. इन दिनों में पितरों या पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध या तर्पण किया जाता है. इन दिनों में पशु-पक्षियों को भोजन कराना बड़ा ही शुभ माना जाता है. वेदों या शास्त्रों में भी कहा गया है कि पितृ पक्ष में पक्षियों और जानवरों को खाना खिलाने से कुंडली में ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है. हिंदू धर्म में मान्यता है कि कई पक्षी या जानवर देवी-देवताओं के वाहन के रूप में काम करते हैं, लिहाजा उनके सम्मान के लिए पितृ पक्ष में उन्हें भोजन कराना अति फलदायी माना जाता है. पितृ पक्ष में कौओं को भोजन कराना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. जानें कौओं को भोजन कराने का क्या है धार्मिक महत्व:
सनातन धर्म में माना जाता है कि हमारे पूर्वज कौओं के रूप में पृथ्वी पर आते हैं. इसलिए उन्हें खाना खिलाने का मतलब मृत पूर्वजों को खाना खिलाने के समान माना जाता है. कौआ पितृ लोक के दूत का काम करता है. कौओं को श्राद्ध का खाना खिलाना पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने और उनकी आत्मा को खुश करने में मददगार होता है. ज्योतिष शास्त्र में माना गया है कि श्राद्ध पक्ष में कौआ आपका दिया भोजन ग्रहण कर ले तो आपके पितृ खुश हो जाते हैं. दूसरी ओर, कौआ अगर आपका भोजन करने नहीं आता है तो माना जाता है कि आपके पूर्वज आपसे रुष्ट हैं. इसलिए पितृपक्ष में कौवे को भोजन जरूर करवाना चाहिए.
शास्त्रों के अनुसार कौओं को भोजन कराने के पीछे पौराणिक कथा जुड़ी है. माना जाता है कि इन्द्र के पुत्र जयन्त ने ही सबसे पहले कौवे का रूप धारण किया था. त्रेतायुग में जब भगवान श्रीराम ने अवतार लिया और जयंत ने कौवे का रूप धारण कर माता सीता के पैर में चोंच मारी तब भगवान श्रीराम ने तिनके का बाण चलाकर जयंत की आंख फोड़ दी थी. जब कौवे ने माफी मांगी, तब राम ने उसे वरदान दिया कि तुम्हें अर्पित किया भोजन पितरों को मिलेगा. तभी से श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की परंपरा चली आ रही है.
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