Parshuram Jayanti 2021: जानिए, परशुराम जयंती का शुभ मुहूर्त और महत्व
परशुराम जी से जुड़ी पौराणिक कथा भी जानिए
highlights
- परशुराम जयंती का शुभ मुहूर्त सुबह 5 बजकर 40 मिनट से शुरु होगा.
- परशुराम जयंती का शुभ मुहूर्त का समापन 15 मई 2021 सुबह 8 बजे होगा.
नई दिल्ली:
Parshuram Jayanti 2021: हिंदू पंचांग (Hindu Panchang) के मुताबिक इस बार परशुराम जयंती 14 मई 2021 (Parshuram Jayanti, 14 May 2021) यानि शुक्रवार (Friday) है. वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को परशुराम जयंती मनाई जाती है. भगवान विष्णु के अवतार परशुराम की पूजा कैसे करें? जानिए कब है शुभ मुहूर्त, महत्व और परशुराम जी को प्रसन्न करने के लिए क्या करें? कौन हैं भगवान परशुराम और क्या है इस जयंती से जुड़ी मान्यता. हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार परशुराम जी से जुड़ी पौराणिक कथा (Mythology) भी जानिए. यहां पढ़िए हर जानकारी
परशुराम जयंती का शुभ मुहूर्त क्या है?
परशुराम जयंती का शुभ मुहूर्त सुबह 5 बजकर 40 मिनट से लेकर 15 मई 2021 सुबह 8 बजे तक है.
कौन हैं भगवान परशुराम?
भगवान परशुराम भार्गव वंश में भगवान विष्णु (Vishnu) के छठे अवतार (Incarnation) हैं. जिनका जन्म त्रेता युग में हुआ था. इनके पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थे.
कैसे मनाई जाती है परशुराम जयंती?
परशुराम जयंती के दिन भक्त व्रत रखते हैं. साथ ही विधि- विधान से भगवान परशुराम की पूजा भी करते हैं.
परशुराम जयंती का महत्व क्या है?
हिन्दू धर्म धर्म की मान्यता के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्माणों और ऋषियों पर होने वाले अत्याचारों खत्म करने के लिए हुआ था. इस दिन दान-पुण्य करने का खास महत्व है. मान्यता है कि इस जयंती के दिन पूजा करने से फल की प्राप्ति होती है. साथ ही जिन लोगों की संतान की प्राप्ति नहीं हो रही है उन लोगों को इस दिन पूजा-पाठ और उपवास करना चाहिए.
जानिए, परशुराम जयंती के लिए पूजा की विधि
- इस दिन सूर्योदय से पहले पवित्र नदी में स्नान करें. यदि यह संभव न हो तो पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए.
- स्नान के बाद दीपक जलाकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
- इसके बाद भगवान विष्णु को चंदन का तिलक लगाकर पूजा करें और भोग लगाएं.
भगवान परशुराम से जुड़ी पौराणिक कथा
कथा के अनुसार परशुराम जी बहुत जल्दी क्रोधवश हो जाते थे. एक बार भगवान कैलाश में भगवान भोलेनाथ (Lord Shiva) से मिलने आए थे और पार्वती पुत्र गणेश (Ganesh) ने उ परशुराम जी को जाने से रोक दिया था. जिसके बाद क्रोधित होकर भगवान परशुराम ने गणेश जी का एक दांत तोड़ दिया था. इसके बाद से ही भगवान गणेश को एकदंत कहा जाने लगा.
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