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Parivartani Ekadashi 2022 Katha: परिवर्तनी एकादशी की कथा दिलाएगी आपको भगवान विष्णु की असीम कृपा, वाजपेई यज्ञ के बराबर मिलता है दिव्य फल

Parivartani Ekadashi 2022 Katha: इस साल भादों माह की शुक्ल पक्ष की परिवर्तनी एकादशी 6 अगस्त, दिन मंगलवार को मनाई जाएगी. माना जाता है कि एकादशी के पूजा के बाद कथा सुनना या पढ़ना आवश्यक होता है. नहीं तो पूजा और व्रत का पूरा फल प्राप्त नहीं हो पाता.

Updated on: 05 Sep 2022, 12:24 PM

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Parivartani Ekadashi 2022 Katha: भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की परिवर्तिनी एकादशी 6 सितंबर 2022,  दिन मंगलवार को पड़ रही है. मान्यता है कि परिवर्तिनी एकादशी पर व्रत रखकर भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करने से घर में खुशहाली आती है, तनाव से मुक्ति मिलती है, जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं और शत्रु भी घुटनों के बल आ जाते हैं. परिवर्तिनी एकादशी को जलझूलनी एकादशी एवं पद्म एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इतना ही नहीं, कुछ जगहों पर इसे डोल ग्यारस भी कहते हैं. माना जाता है कि एकादशी के पूजा के बाद कथा सुनना या पढ़ना आवश्यक होता है. नहीं तो पूजा और व्रत का पूरा फल प्राप्त नहीं हो पाता. ऐसे में आइए जानते हैं परिवर्तनी एकादशी की रोचक और रहस्यमयी कथा के बारे में.  

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परिवर्तिनी एकादशी को जलझूलनी एकादशी, पद्म एकादशी भी कहा जाता है. इस एकादशी के व्रत की कथा स्वंय भगवान कृष्ण ने युदिष्ठिर को बताई थी. श्रीकृष्ण ने कहा था कि इस कथा को मात्र पढ़ने से व्यक्ति के पाप क्षणभर में नष्ट हो जाते हैं. कथा के अनुसार त्रेतायुग युग में दैत्यराज बलि भगवान विष्णु का परम भक्त था. इंद्र से बैर के कारण राजा बलि ने इंद्रलोक में आक्रमण कर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया था. सभी देवी-देवता उसके अत्याचार से डरे हुए थे.

इंद्र समेत सभी देवताओं ने राजा बलि के भय से मुक्ति के लिए भगवान विष्णु से मदद की गुहार लगाई. भगवान विष्णु ने देवताओं को बलि के डर से छुटकारा दिलाने का आश्वासन देते हुए वामन अवतार लिया और फिर दैत्यराज बलि के पास पहुंच गए. यहां उन्होंने बलि से तीन पग भूमि दान में मांग ली. बलि ने वामन देव को तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया.

वामन देव ने अपना विकारल रूप धारण कर एक पग स्वर्ग नाप लिया, दूसरे से धरती, तीसरे कदम के लिए जब कोई जगह नहीं बची तो राजा बलि ने अपना सिर झुका दिया और बोले की तीसरा कदम यहां रख दीजिए. वामन देव राजा बलि की भक्ति और वचनबद्धता से बहुत प्रसन्न हुए. भगवान विष्णु के पांचवे अवतार वामन देव ने फलस्वरूप राजा बलि को पाताल लोक दे दिया. वामन देव ने जैसे ही तीसरा पग बलि के सिर पर रखा वो पाताल लोक चला गया.