पारस भाई ने बताया- कैसे गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने संभाली सिखों की जिम्मेदारी
गुरु हरगोबिंद सिंह जी सिखों के छठे गुरु थे. नानक शाही पंचांग के मुताबिक, इस साल गुरु हरगोबिंद सिंह जी की जयंती 19 जून को मनाई जाएगी. पारस परिवार के मुखिया पारस भाई जी ने गुरु हरगोबिंद सिंह की जयंती पर सिख भाइयों को बधाई दी है.
नई दिल्ली:
गुरु हरगोबिंद सिंह जी सिखों के छठे गुरु थे. नानक शाही पंचांग के मुताबिक, इस साल गुरु हरगोबिंद सिंह जी की जयंती 19 जून को मनाई जाएगी. पारस परिवार (Paras Parivaar) के मुखिया पारस भाई जी (Paras Bhai Ji) ने गुरु हरगोबिंद सिंह की जयंती पर सिख भाइयों को बहुत-बहुत बधाई दी है. पारस भाई ने कहा कि गुरु हरगोबिंद सिंह ने ही सिख समुदाय को सेना के रूप में संगठित होने के लिए प्रेरित किया था. उनका कार्यकाल सिखों के गुरु के रूप में सबसे अधिक था. उन्होंने यह जिम्मेदारी 37 साल, 9 महीने, 3 दिन तक संभाली थी.
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गुरु हरगोबिंद साहिब का जन्म 21 आषाढ़ (वदी 6) संवत 1652 ( 19 जून, 1595) को अमृतसर के गांव वडाली में गुरु अर्जन देव के घर हुआ था. पारस भाई ने हरगोबिंद सिंह जी के इतिहास में प्रकाश डालते हुए कहा कि मुगल बादशाह जहांगीर ने उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्हें व उनके द्वारा 52 राजाओं को कैद से मुक्त कर दिया था. उनके जन्मोत्सव को ‘गुरु हरगोबिंद सिंह जयंती’ के रूप में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इस अवसर पर गुरुद्वारों में भव्य कार्यक्रम सहित गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है. साथ ही गुरुद्वारों में गरीबों और मजदूरों के लिए लंगर का आयोजन किया जाता है.
पारस भाई जी की जुबानी जानें गुरु हरगोबिंद सिंह का जीवन परिचय
गुरु हरगोबिंद सिंह जी का जन्म अमृतसर के गांव वडाली में माता गंगा और पिता गुरु अर्जुन देव के घर पर 21 आषाढ़ (वदी 6) संवत 1652 को हुआ था. गुरु हरगोबिंद सिंह को 11 साल की उम्र में सन् 1606 में ही गुरु की उपाधि मिल गई थी. उनको अपने पिता और सिखों के 5वें गुरु अर्जुन देव की ओर से यह उपाधि मिली थी.
सिख धर्म में वीरता की नई मिसाल कायम करने के लिए गुरु हरगोबिंद सिंह जी को जाना जाता है. वह हमेशा अपने साथ मीरी तथा पीरी नाम की दो तलवारें धारण करते थे. एक तलवार धर्म के लिए और दूसरी तलवार धर्म की रक्षा के लिए. जब मुगल शासक जहांगीर के आदेश पर गुरु अर्जुन सिंह को फांसी दे दी गई तब गुरु हरगोबिंद ने सिखों का नेतृत्व किया था. सिख धर्म में उन्होंने एक नई क्रांति को जन्म दिया, जिस पर आगे चलकर सिखों की विशाल सेना तैयार हुई.
साल 1627 में जहांगीर की मौत के बाद मुगलों के नए बादशाह शाहजहां ने सिखों पर और अधिक कहर बरपाना शुरू कर दिया था, तब हरगोबिंद सिंह को अपने धर्म की रक्षा के लिए आगे आना पड़ा था. सिखों के पहले से स्थापित आदर्शों में से स्थापित आदर्शों में हरगोबिंद ने ही यह आदर्श जोड़ा था कि सिखों को यह अधिकार है कि जरूरत पड़ने पर वे अपनी तलवार उठाकर धर्म की रक्षा कर सकते हैं.
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सिखों द्वारा बगावत करने पर मुगल बादशाह जहांगीर ने गुरु हरगोबिंद सिंह को कैद में डाल दिया था. गुरु हरगोबिंद सिंह 52 राजाओं समेत ग्वालियर के किले में बंदी बनाए गए थे. इसके बाद से जहांगीर मानसिक रूप से परेशान रहने लगा. इस दौरान किसी फकीर ने उसे सलाह दी कि वह गुरु हरगोबिंद साहब को छोड़ दें. यह भी मान्यता है कि सपने में जहांगीर को किसी फकीर से गुरुजी को आजाद करने का आदेश मिला था. जब गुरु हरगोबिंद को कैद से रिहा किया जाने लगा तो वह अपने साथ कैद हुए 52 राजाओं को रिहा कराने पर अड़ गए.
गुरु हरगोबिंद सिंह के कहने पर जहांगीर ने 52 राजाओं को अपनी कैद से मुक्त कर दिया था. जहांगीर 52 राजाओं को रिहा नहीं करना चाहता था, इसलिए उसने एक कूटनीति बनाई और आदेश दिया कि जितने राजा गुरु हरगोबिंद साहब का दामन थाम कर बाहर आ सकेंगे, वो रिहा कर दिए जाएंगे.
इसके लिए एक युक्ति निकाली गई कि जेल से रिहा होने पर नया कपड़ा पहनने के नाम पर 52 कलियों का अंगरखा सिलवाया जाए. गुरु जी ने उस अंगरखे को पहना और हर कली के छोर को 52 राजाओं ने थाम लिया और इस तरह सब राजा रिहा हो गए. गुरु हरगोबिंद जी की सूझबूझ की वजह से उन्हें ‘दाता बंदी छोड़’ के नाम से बुलाया गया और हम सभी हमारे गुरु श्री हरगोबिंद जी को नमन करते हैं.
जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल
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